जमशेदपुर में आदिवासी महा दरबार : परंपरा, अधिकार और संघर्ष पर उठे स्वर

जमशेदपुर। बिष्टुपुर स्थित एक्सएलआरआई ऑडिटोरियम में रविवार को भव्य आदिवासी महा दरबार का आयोजन किया गया। इसका आयोजन आदिवासी सांवता सुसार अखाड़ा की ओर से किया गया था। इस कार्यक्रम में झारखंड, बंगाल और उड़ीसा से आए दो हजार से अधिक माझी बाबा और आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सभा में सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और संवैधानिक अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर गंभीर मंथन हुआ।
महा दरबार के मुख्य अतिथि पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन रहे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज को अपनी संस्कृति और परंपरा की रक्षा के लिए लगातार संघर्ष करना होगा। उन्होंने ऐलान किया कि वे 24 सितंबर को नगड़ी ग्राम में परंपरागत रीति से हल जोतेंगे। उन्होंने राज्य सरकार को चुनौती दी कि यदि उसमें दम है तो उन्हें रोके। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि बाबा तिलका मांझी, वीर सिदो–कान्हू, चांद–भैरव और भगवान बिरसा मुंडा जैसे महान योद्धाओं ने जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए अपनी जानें तक न्योछावर कर दीं। उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आज भी हमें अपनी अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई लड़नी होगी।
इस महा दरबार में सरना समिति की उपाध्यक्ष निशा उरांव ने संविधान प्रदत्त अधिकारों पर जोर देते हुए कहा कि अनुसूचित जनजातियों को दी गई सुरक्षा को व्यवहारिक रूप से लागू करने की जरूरत है। उन्होंने पेसा कानून की अनदेखी पर चिंता जताई और बताया कि झारखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया है कि इसे तुरंत लागू किया जाए। उन्होंने कहा कि बीते पंद्रह वर्षों से धर्मांतरण, ग्राम सभा की स्वायत्तता और रूढ़ि–प्रथा से जुड़े मुद्दों पर संघर्ष जारी है, लेकिन अब समय आ गया है कि इसके स्थान पर छठी अनुसूची के तहत चुनाव कराने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
सभा में उपस्थित बुद्धिजीवियों और वक्ताओं ने जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा, परंपराओं के संरक्षण, संवैधानिक अधिकारों की मजबूती, ग्राम सभा की भूमिका और आदिवासी समाज के युवाओं के लिए शिक्षा एवं रोजगार जैसे विषयों पर अपनी बात रखी।
आदिवासी महा दरबार ने अंत में यह संदेश दिया कि समाज अपनी पहचान, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए पूरी तरह एकजुट है और आने वाले दिनों में इस आंदोलन को और व्यापक रूप दिया जाएगा।