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घाटशिला में कुड़मी समाज का बड़ा ऐलान: “No ST, No Vote” – झारखंड की राजनीति में नई हलचल

न्यूज़ लहर संवाददाता

जमशेदपुर : झारखंड के घाटशिला विधानसभा क्षेत्र में कुड़मी समाज का आंदोलन अब एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। लंबे समय से अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग को लेकर संघर्षरत कुड़मी समाज ने रविवार को स्पष्ट चेतावनी दी कि जब तक सरकार उनकी मांगों पर ठोस कदम नहीं उठाती, तब तक उनका नारा रहेगा – “No ST, No Vote।” समाज ने कहा कि घाटशिला उपचुनाव में वे वोट का बहिष्कार करेंगे और सरकार को अपनी उपेक्षा का जवाब लोकतांत्रिक तरीके से देंगे।

रेल टेका वार्ता को छलावा बताते हुए समाज के नेताओं ने कहा कि सरकार ने अब तक केवल आश्वासन दिया है, लेकिन कोई ठोस निर्णय नहीं लिया। यही कारण है कि अब कुड़मी समाज ने आंदोलन को राजनीतिक रूप देने का फैसला किया है। जानकारी के अनुसार, घाटशिला विधानसभा क्षेत्र के करीब 93 कुड़मी बहुल गांवों में अगले दस दिनों के भीतर ग्रामसभा स्तर पर संगठन का विस्तार किया जाएगा। इसके साथ ही एक व्यापक हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जाएगा, ताकि समाज की आवाज फिर से केंद्र और राज्य सरकार तक पहुंच सके।

कुड़मी समाज की प्रमुख मांगें तीन हैं — पहली, कुड़मी जाति को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जाए; दूसरी, कुर्माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिया जाए; और तीसरी, सरना धर्म कोड को स्वीकृति मिले। इन मांगों को लेकर समाज पिछले कई वर्षों से संघर्षरत है, लेकिन उन्हें अब तक केवल आश्वासन ही मिला है।

युवा नेता अमित महतो ने कहा कि यदि सरकार अगले पंद्रह दिनों में समाज के प्रतिनिधियों से बातचीत नहीं करती, तो घाटशिला उपचुनाव का बहिष्कार तय है। उन्होंने कहा कि यह आंदोलन केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि अस्तित्व और पहचान की लड़ाई है। समाज अपनी संस्कृति और परंपरा की रक्षा के लिए हर स्तर पर संघर्ष जारी रखेगा।

इस दौरान सूरदा में आयोजित जनजागरण बैठक में समाज के कई प्रमुख सदस्य — मानिक महतो, पीयूष महतो, मलया जी और भव तरण जी — उपस्थित रहे। बैठक में संगठन विस्तार, ग्रामसभा अभियान और आगामी रणनीति पर लंबी चर्चा हुई। उपस्थित सदस्यों ने एकमत होकर संकल्प लिया कि जब तक समाज को उसका संवैधानिक अधिकार नहीं मिल जाता, तब तक यह लड़ाई जारी रहेगी।

कुड़मी समाज का यह फैसला झारखंड की राजनीति में एक बड़ा असर डाल सकता है। घाटशिला उपचुनाव में उनका “No ST, No Vote” अभियान आने वाले दिनों में अन्य इलाकों में भी गूंज सकता है। झारखंड में यह आंदोलन अब केवल सामाजिक नहीं, बल्कि राजनीतिक स्वरूप लेता जा रहा है, और इसके प्रभाव दूरगामी हो सकते हैं।

 

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