छठ यानि 6 वा दिन महापर्व कार्तिक मास मे शुक्ल पक्ष को होने वाले इस महापर्व को छठ के नाम से जाना जाता हैँ
लेखक
आनंद शर्मा
ज्योतिष, वास्तु और तंत्र विशेषज्ञ
9835702489,6204093598
छठ यानि 6 वा दिन, कार्तिक मास मे शुक्ल पक्ष को
होने वाले इस महापर्व को छठ के नाम से जाना जाता हैँ
यह एक प्रकृति और पुरुष के संयोग से सृष्टि के जन्म होने
का प्रतिक स्वरुप पूजा हैँ इन्ही दोनों के मिलान से समस्त सृष्टि की रचना हुई हैँ
प्रकृति माता हैँ जिन्हे हम छठी मईया पुकारते हैँ और
पुरुष स्वरुप सूर्य देव हैँ जिन्हे हम आत्मा स्वरुप मे जानते हैँ
अतः इसलिए पूजा मे इन दोनों की ही पूजा की जाती हैँ
नदी के तीर पर पांच तत्व का मिलान होता हैँ इसलिए इसे नदी या जल स्त्रोत के पास किया जाता हैँ
जल, वायु, पृथ्वी, आकाश एक साथ यही मौजूद रहते हैँ और अग्नि साक्षात् सूर्य देव हैँ साथ ही धुप दीप हवन आदि भी होती हैँ तो पांचो तत्वों का मिलान एक साथ इस पर्व मे होता हैँ
यह पर्व विशुद्ध होकर व्रत उपवास के साथ मनाया जाता हैँ
प्रकृति से प्राप्त चीज़ो को प्रकृति को ही समर्पित किया जाता हैँ
साथ ही सूर्य के कारक तत्व जैसे गुड़, गेंहू, बांस के बने डाला सुप्, ताम्बा के पात्र घी और इन्ही चीज़ो से बने ठेकुआ को प्रसाद स्वरुप पूजा मे प्रयोग किया जाता हैँ
सूर्य आरोग्य देने वाले, संतान देने वाले, आयु और मान सम्मान, पद प्रतिष्ठा देने वाले ग्रह हैँ
इस पूजन मे जातक स्वयं सूर्य देव को अर्घ्य देकर अपनी विनती करता हैँ इसमें किसी पंडित पुरोहित की अवश्यकता ही नहीं होती
जिनकी भी कुंडली मे सूर्य कमजोर हैँ या स्वस्थ बाधा रहती हैँ संतान बाधा रहती हैँ मान सम्मान की कमी रहती हैँ उन्हें इस पूजन से विशेष लाभ होता हैँ
पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल मे अंग देश जो की वर्तमान मे बिहार स्तिथ मुंगेर प्रदेश कहलाता हैँ वही के राजा कर्ण के द्वारा शुरू किया गया था इसलिए इसलिए पर्व
का मूल स्थान बिहार हैँ और यही से सब जगह फैला हैँ
कहा जाता हैँ पांडव पांच थे और छठा पांडव कर्ण थे जिसे माता कुंती ने लोकलाज के कारण त्याग दिया था
राजा कर्ण स्वयं सूर्य पुत्र थे और बहुत बड़े दानी थे और एक श्रेष्ठ धनुरधारी थे
इसलिये छठ के गीत मे गाना आता हैँ
कांच ही बांस के बाहँगीया… बाहँगी लचकत जाए
मरबो जे सुगवा धनुष से सुगा गिरे मुरुछाये
जैसा की हम सभी जानते हैँ
शरीर की निर्मलता स्नान से
मन की निर्मलता ज्ञान से और
आत्मा की निर्मलता दान से होती हैँ
ज्योतिष मे सूर्य को आत्मा का कारक स्वरूप मना गया हैँ
इसलिए इस पूजा मे शुद्धता निर्मलता सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता हैँ साथ मे पूजा के उपरांत फल एवं प्रसाद का दान किया जाता हैँ
अनेक व्यक्ति और संस्था इसलिए महापर्व मे दान करके पुण्य अर्जित करते हैँ
यही एक पर्व हैँ जहाँ डूबते सूर्य को पहले अर्घ्य दिया जाता हैँ और उगते सूर्य को बाद मे जो हमें ऐसे संस्कार से जोड़ते हैँ जहाँ सेवा, दान, दया निस्वार्थ भाव से उसके लिए करें जो लाचार हैँ बड़े बुजुर्ग को देखे उनका सेवा करें ऐसी भावना को
प्रबल करती है.
छठ महापर्व 2025 की रुपरेखा
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष के
चतुर्थी शनिवार दिनांक 25 अक्टूबर 2025 को नहाय खाय
पंचमी रविवार दिनांक 26 अक्टूबर 2025 को खरना
षस्ठी सोमवार दिनांक 27 अक्टूबर 2025 को संध्या अर्घ्य
सप्तमी मंगलवार दिनांक 28 अक्टूबर 2025 को सुबह का अर्घ्य
27 अक्टूबर 2025 को सूर्यास्त का समय शाम 5 36 pm
28 अक्टूबर 2025 को सूर्योदय का समय सुबह 6 24 am
जय छठी मईया
9835702489,6204093598















