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जमशेदपुर में नहाय-खाय अनुष्ठान के साथ आज से चार दिवसीय महापर्व छठ शुरु आस्था, उपासना और प्रकृति प्रेम का अनूठा संगम है महापर्व छठ

न्यूज़ लहर संवाददाता

जमशेदपुर : सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ नहाय-खाय के पावन अनुष्ठान के साथ शनिवार से शुरू हो गया है। छठ महापर्व आस्था, उपासना और प्रकृति प्रेम का एक अनूठा संगम है। इसमें जहां अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है, वहीं प्रसाद में भी प्रकृति के विविध रंग समाहित होते हैं। छठ पूजा के गीत और धुनों में भी भक्ति और प्रकृति का अद्भुत भाव भरा होता है।

छठ के गीतों से पूरा वातावरण भक्तिमय है। फल, पूजन सामग्री, सूप दौरा, मिट्टी के बर्तनों की खरीदारी तेज हो गई है। छठ पर्व को लेकर बाजार भी गुलजार हैं।

मानगो के विकास सिंह की मानें तो महापर्व छठ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं,प्रकृति से सम्बन्ध का प्रतीक है। मान्यता है कि छठ महापर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, अनुशासन और प्रकृति के संग गहराई से जुड़ी जीवनशैली का प्रतीक है। यह पर्व लोक संस्कृति का वह उज्ज्वल अध्याय है जो मनुष्य को सूर्य, जल और धरती से जोड़ता है।

पूर्वी सिंहभूम जिले के शहरी और गांव देहात तक में छठ की तैयारी हफ्तों पहले से शुरू हो जाती है। तालाबों की सफ़ाई, घाटों की सजावट और मिट्टी के बर्तनों की ख़रीद से हर घर में पवित्रता और भक्ति का वातावरण बनता है। महिलाएँ व्रत रखकर अस्ताचल और उदयाचल भगवान भुवन भास्कर को अर्घ्य प्रदान करती हैं। कई पीढ़ियों से(पहले बिहार और अब झारखंड में) छठ महापर्व करने वाले परिवार के सदस्य और शिक्षक राजेश कुमार मिश्रा बताते हैं कि हम जो भगवान सूर्य को जो अर्घ्य प्रदान करते हैं, वह जीवन के संतुलन, आशा और पुनर्जन्म का प्रतीक है। यह सूर्य, जल और मानव के अटूट सम्बन्ध का भी प्रतीक है।

बर्मामाइंस के समाजसेवी नरीमन दुबे कहते हैं कि झारखंड में छठ का विशिष्ट स्वरूप है। यहाँ के ग्रामीण समुदाय इसे नदियों, पोखरों और खेतों के किनारे मनाते हैं। लोकगीतों की गूंज, ढोल नगाड़े, मांदर और अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप के साथ झारखंड में इस पर्व को विशिष्ट सांस्कृतिक रंग प्रदान करते हैं। हालांकि गांव से लेकर शहरी और अर्द्धशहरी क्षेत्रों में अब यह परम्परा धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है और इसका बहुत बड़ा कारण कहीं न कहीं धर्मांतरण भी है।

कदमा के प्रवेश चंद्र कहते हैं कि यह पर्व पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है। स्वच्छता, जलस्रोतों का सम्मान और मिट्टी के दीपों का प्रयोग हमें यह सिखाता है कि प्रकृति के साथ संतुलन ही सच्चा धर्म है।

उन्होंने कहा कि आधुनिक जीवन की भागदौड़ के बीच छठ हमें अपनी जड़ों की याद दिलाता है-जहाँ भक्ति केवल अनुष्ठान नहीं,बल्कि एक जीवनदर्शन है।

टेल्को के हर्षवर्धन ने कहा कि छठ महापर्व इस बात का प्रतीक है कि जब मनुष्य प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होता है, तभी उसका जीवन प्रकाशमय बनता है।

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