महावीर के उपदेश व्यक्ति को आत्म-ज्ञान और मोक्ष की ओर ले जाती है– प्रभाष कु जैन
News Lahar Reporter Ranchi: राँची कॉलेज राँची के पूर्व विभाग अध्यक्ष (इतिहास ) के प्रोफेसर श्री सुरेश कुमार जैन के झारखण्ड राँची के समाजसेवी सह व्यवसायी सुपुत्र प्रभाष कुमार जैन ने साक्षात्कार बताया कि वे भगवान महावीर जी के विचारों के प्रति वे पूर्णतः समर्पित हैं तथा उनके नीति एवं धर्मोपदेश को जीवन का आधार मान समाज उत्थान का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि महावीर के उपदेशों में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, और ब्रह्मचर्य के सिद्धांतों पर जोर दिया गया है । जिनका उद्देश्य व्यक्ति को आत्म-ज्ञान और मोक्ष की ओर ले जाना है।उन्होंने बताया कि गिरनार ( गुजरात ) के 9999 सीढी चढ़ वे भगवान महावीर के अविस्मरणीय स्थान का दर्शन किया है । यहाँ जाने के लिए इसके अतिरिक्त एशिया के सबसे लंबे रोपवे का उपयोग किया जा सकता है। सच्चाई यह है कि गिरनार गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित एक प्राचीन और पवित्र पर्वत है, जो हिंदू और जैन दोनों धर्मों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यह हिमालय से भी पुराना माना जाता है और इसके शिखर पर कई हिंदू और जैन मंदिर हैं, जिनमें सबसे ऊँची चोटी पर स्थित गोरखनाथ मंदिर और अम्बा माता मंदिर प्रमुख हैं। धार्मिक महत्व के आधार पर यह जैन धर्म के 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की निर्वाण भूमि मानी जाती है।हिंदुओं के लिए, यह भगवान दत्तात्रेय, शिव और अम्बा माता जैसे देवताओं के लिए एक पवित्र स्थान है।आगे समाजसेवी सह व्यवसायी प्रभाष कु जैन ने आगे बताया कि वे मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड जैन मंदिर, झारखण्ड के पारसनाथ मंदिर जैन मंदिर, चौपारण के पास चतरा जैन मंदिर के अतिरिक्त इटखोरी के जैन मंदिर का दर्शन कर चुके हैं ।देखा जाए तो संपूर्ण भारत में जैन धर्म के पवित्र स्थानों में से एक मंदिर राजस्थान में ‘श्री महावीर जी’ नाम से प्रसिद्ध है । राजस्थान में यह मंदिर श्री भगवान महावीर स्वामी का भव्य विशाल मंदिर है। यह दिगंबर जैन धर्मावलंबियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। गंभीर नदी के तट पर स्थित इस मंदिर में 24 वें तीर्थंकर श्री वर्धमान महावीर जी की मूर्ति विराजित है। इस मंदिर के निर्माण के पीछे पवित्र कथा है- कोई 400 साल पहले की बात है। एक गाय अपने घर से प्रतिदिन सुबह घास चरने के लिए निकलती थी और शाम को घर लौट आती थी। कुछ दिन बाद जब गाय घर लौटती थी तो उसके थन में दूध नहीं होता था। इससे परेशान होकर एक दिन उसके मालिक चर्मकार ने सुबह गाय का पीछा किया और पाया कि एक विशेष स्थान पर वह गाय अपना दूध गिरा देती थी। यह चमत्कार देखने के बाद चर्मकार ने इस टीले की खुदाई की थी।खुदाई में श्री महावीर भगवान की प्राचीन पाषाण प्रतिमा प्रकट हुई जिसे पाकर वह बेहद आनंदित हुआ।भगवान के इस अतिशय उद्भव से प्रभावित होकर बसवा निवासी अमरचंद बिलाला ने यहां एक सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया। यह मंदिर प्राचीन और आधुनिक जैन वास्तुकला का अनुपम समागम है, जो प्राचीन जैन कला शैली के बने मंदिरों से अलग है। यह मंदिर मूल रूप से सफेद और लाल पत्थरों से बना है जिसके चारों ओर छत्रियां बनी हुई हैं। इस विशाल मंदिर के गगनचुंबी धवल शिखर को स्वर्ण कलशों से सजाया गया है। इन स्वर्ण कलशों पर फहराती जैन धर्म की ध्वजाएं सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र्य का संदेश दे रही हैं। मंदिर में जैन तीर्थंकरों की कई भव्य मूर्तियां प्रतिष्ठित हैं। इसके साथ ही मंदिर की दीवारों पर स्वर्ण पच्चीकारी का काम किया गया है, जो मंदिर के स्वरूप को बेहद कलात्मक रूप देता है। मंदिर के सामने सफेद संगमरमर से भव्य ऊंचा मान स्तंभ बनाया गया है जिसमें श्री महावीर जी की मूर्ति स्थापित की गई है ।













