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यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) ने भारत सरकार के साथ स्थायी शांति समझौते पर किया साइन,डालें हथियार

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

मणिपुर:उपलब्धि भरी खबर हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर से आई है। मई के महीने से मणिपुर हिंसा में जल रहा है। ऐसे में केंद्र व राज्य सरकार सूबे में शांति स्थापित करने के लिए लगातार कोशिश कर रही है। इस बीच इस मुद्दे पर सरकार को बुधवार को बड़ी सफलता मिली है।

दरअसल, मणिपुर के सबसे पुराने विद्रोही समूह यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) ने भारत सरकार के साथ स्थायी शांति समझौते पर साइन किया है। इस बात की जानकारी खुद गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर दी।

UNLF के साथ स्थायी शांति समझौते पर साइन होने के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने X पर लिखा, “एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल हुई। पूर्वोत्तर में स्थायी शांति स्थापित करने के मोदी सरकार के अथक प्रयासों में एक नया अध्याय जुड़ गया है, क्योंकि यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) ने आज नई दिल्ली में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए।

मणिपुर का सबसे पुराना घाटी स्थित सशस्त्र समूह यूएनएलएफ हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने पर सहमत हो गया है। मैं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में उनका स्वागत करता हूं और शांति और प्रगति के पथ पर उनकी यात्रा के लिए शुभकामनाएं देता हूं।”यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) को यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ मणिपुर के नाम से भी जाना जाता है। ये पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर राज्य में सक्रिय एक अलगाववादी विद्रोही समूह है। इसका मकसद एक संप्रभु और समाजवादी मणिपुर की स्थापना करना हैUNLF की स्थापना 24 नवंबर 1964 को हुई थी। UNLF के अध्यक्ष आरके मेघन उर्फ सना याइमा पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने भारत के खिलाफ “युद्ध छेड़ने” का आरोप लगाया गया है। हालांकि, UNLF के नेता का कहना है कि वह भारत या उसकी सेना को दुश्मन के रूप में नहीं देखता है। UNLF सिर्फ भारतीयों का विरोध करता है।राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने सितंबर 2012 में स्वीकार किया कि यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट की गतिविधियां मणिपुर राज्य में संप्रभुता लाने के लिए हैं। UNLF के चीफ सना याइमा का मानना है कि मणिपुर मार्शल लॉ के तहत है। उन्होंने मणिपुर में हुए चुनावों के चरित्र और योग्यता पर सवाल उठाया था। उनका मानना है कि इस संघर्ष को सुलझाने का सबसे लोकतांत्रिक साधन जनमत संग्रह है।

बताते चलें कि, इस साल मैतई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलो में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए थे, जिसके बाद से राज्य में भड़की हिंसा में 180 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।

मैतई राज्य की आबादी का 53 फीसदी हिस्सा हैं और उनमें से अधिकांश इंफाल घाटी में रहते हैं। जबकि नागा और कुकी समेत अन्य आदिवासी आबादी का 40 फीसदी हैं, जो खासतौर पर राज्य के पहाड़ी जिलों में रहते हैं।

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