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भारत ने पाकिस्तान को दिए अपने 12 गांव, हुसैनीवाला गांव का इतिहास और महत्व**

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

नई दिल्ली: भारत में 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इस दिन स्वतंत्रता के दीवानों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को याद किया जाता है जिन्होंने 23 मार्च 1931 को सर्वोच्च बलिदान दिया था। दरअसल, इसी तारीख को ब्रिटिश सरकार ने तीनों वीरों को फांसी की सजा दी थी।भारत में हमेशा से शहीदों का सम्मान किया गया है।

 

**हुसैनीवाला गांव, भारत-पाकिस्तान सीमा के करीब, भगत सिंह, राजगुरू, और सुखदेव के इतिहास से जुड़ा एक अनमोल स्मृति स्थल**

 

हुसैनीवाला गांव, भारत-पाकिस्तान सीमा के करीब फिरोज़पुर शहर का हिस्सा, 1962 तक पाकिस्तान का हिस्सा हुआ करता था।1962 में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ, जिसमें भारत सरकार ने हुसैनीवाला गांव को हासिल करने के लिए अपने 12 गांव पाकिस्तान को दे दिए।

 

भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए सेंट्रल असेंबली में बम फेंका। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी की सजा सुनाई गई। लेकिन उनके अवशेषों को जलाने की कोशिश नाकाम रही और उनका शव हुसैनीवाला गांव में ले जाकर वहाँ नदी में बहा दिया गया।

 

**स्मृति स्थल के रूप में श्रद्धा से याद किए जाते हैं भगत सिंह, राजगुरू, और सुखदेव**

 

भारत सरकार ने शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की याद में सतलज नदी के तट पर 1968 में हुसैनीवाला राष्ट्रीय शहीद स्मारक की स्थापना की। इसके बावजूद, 1971 युद्ध में पाकिस्तान ने इस जगह को फिर से हथियाने की कोशिश की थी, लेकिन वह नाकाम रही।

 

**अत्यंत महत्वपूर्ण सीमा समापन समारोह का स्थान**

 

हुसैनीवाला बार्डर पर अटारी-वाघा बार्डर की तर्ज पर रिट्रीट सेरेमनी का भी आयोजन किया जाता है, जो अपने आप में एक अनूठी परंपरा है।

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