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गुरु अर्जुन देव जी की शहादत दिवस पर छबील, हलवा, चना एवं शर्बत का वितरण

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

झारखंड: पूर्वी सिंहभूम जिला स्थित जमशेदपुर में सिख धर्म के पहले शहीद गुरु अर्जुन देव जी की शहादत दिवस के मौके पर आज  शनिवार को पुराना कोर्ट परिसर में छबील, हलवा, चना, एवं शर्बत का वितरण किया गया। इस मौके पर आयोजकों द्वारा गुरु अर्जुन देव जी को नमन कर उनके संदेश को जीवन में अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया गया। उक्त कार्यक्रम जमशेदपुर बार संघ के वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम दुबे के सफल नेतृत्व में आयोजित किया गया।

 

मौके पर अधिवक्ता श्री दुबे ने कहा कि गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद थे और मुगल शासक जहांगीर के आदेश पर उन्हें फांसी दी गई थी। अर्जुन देव ने सिख धर्म ग्रंथ आदि ग्रंथ का पहला संस्करण संकलित किया था, जिसे अब गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से जाना जाता है। गुरु अर्जुन देव की शहादत दिवस पर लोग अक्सर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं और श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है। गुरुद्वारे में लंगर भी बांटे जाते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु अर्जुन देव जी धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे प्रेमी थे। सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी का नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा में व्यतीत किया।

**क्यों शहीद हुए गुरु अर्जुन देव**

 

गुरु अर्जुन देव जी धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे सेवक थे और उनके मन में सभी धर्मों के लिए सम्मान था। मुगलकाल में अकबर, गुरु अर्जुन देव के मुरीद थे, लेकिन जब अकबर का निधन हो गया तो इसके बाद जहांगीर के शासनकाल में इनके रिश्तों में खटास पैदा हो गई। ऐसा कहा जाता है कि शहजादा खुसरो को जब मुगल शासक जहांगीर ने देश निकाला का आदेश दिया था, तो गुरु अर्जुन देव ने उन्हें शरण दी। यही वजह थी कि जहांगीर ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी। गुरु अर्जुन देव ईश्वर को यादकर सभी यातनाएं सह गए और 30 मई, 1606 को उनका निधन हो गया। जीवन के अंतिम समय में उन्होंने यह अरदास की। गुरु अर्जुन देव जी की अमर गाथा आज भी पंजाबी समुदाय के हर घर में सुनाई जाती है।

उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। उनके पिता गुरु राम दास थे, जो सिखों के चौथे गुरु थे और माता का नाम बीवी भानी था। गुरु अर्जुन देव बचपन से ही धर्म-कर्म में रुचि लेते थे। उन्हें अध्यात्म से भी काफी लगाव था और समाज सेवा को अपना सबसे बड़ा धर्म और कर्म मानते थे। गुरु अर्जुन देव जी का 16 साल की उम्र में ही विवाह माता गंगा से हो गया था। वहीं, 1582 में सिखों के चौथे गुरु रामदास ने अर्जुन देव जी को अपने स्थान पर पांचवें गुरु के रूप में नियुक्त किया था।

 

**गुरु अर्जुन देव की रचनाएं**

 

अर्जुन देव को साहित्य से भी अगाध स्नेह था। ये संस्कृत और स्थानीय भाषाओं के प्रकांड पंडित थे। इन्होंने कई गुरुवाणी की रचनाएं कीं, जो आदिग्रंथ में संकलित हैं। इनकी रचनाओं को आज भी लोग गुनगुनाते हैं और गुरुद्वारे में कीर्तन किया जाता है।

 

कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से श्रीराम दुबे, अवतार सिंह, बबलू सिंह, गुलजीत सिंह, सुखविंदर सिंह, कुलविंदर सिंह, नवीन, ज्ञानी जी आदि की सार्थक भूमिका रही। शहीदी कार्यक्रम में काफी लोगों ने गुरु का प्रसाद ग्रहण किया।

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