जल संरक्षण और पर्यावरण रक्षा पर आनंद मार्ग संघ का संभागीय सेमिनार
न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड:जमशेदपुर में आनंद मार्ग प्रचारक संघ के तीन दिवसीय प्रथम संभागीय सेमिनार का आयोजन आनंद मार्ग जागृति गदरा में किया गया। सेमिनार के पहले दिन आचार्य नभातीतानंद अवधूत ने “जल संरक्षण” विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्तमान पर्यावरणीय चुनौतियों को देखते हुए जल संरक्षण और सतत भूमि प्रबंधन के दृष्टिकोण को पुनर्विचार और सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि पारंपरिक ज्ञान और वैज्ञानिक सिद्धांतों के संयोजन से पर्यावरणीय गिरावट और जल संकट का प्रभावी समाधान संभव है।
जल संरक्षण के लिए चार महत्वपूर्ण रणनीतियाँ
सेमिनार में आचार्य नभातीतानंद अवधूत ने जल संरक्षण और पर्यावरण रक्षा के चार प्रमुख उपाय सुझाए:
1. पारंपरिक और वैज्ञानिक फसल प्रबंधन का समन्वय
उन्होंने बताया कि बार्ली और सब्जियों जैसी फसलों को एक साथ उगाने से जल संसाधनों का कुशल उपयोग किया जा सकता है। बार्ली को कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे जल अपव्यय कम होता है। साथ ही, बहते पानी का उपयोग कर बिना अतिरिक्त बुनियादी ढांचे के फसलों की सिंचाई संभव होती है।
2. फलदार वृक्षों की रणनीतिक रोपाई
आचार्य ने सुझाव दिया कि नदी किनारों और कृषि क्षेत्रों के पास फलदार वृक्षों का रोपण किया जाए, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहे और जल स्रोतों का संतुलन बना रहे। वृक्षों की जड़ प्रणालियाँ जल संरक्षण में मदद करती हैं और स्थानीय जल निकायों की रक्षा करती हैं।
3. वनों और नदी प्रणालियों की पुनर्स्थापना
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि बंगाल की मयूराक्षी नदी जैसी कई नदियाँ वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण सूख चुकी हैं। पहले इन नदियों में बड़े जहाज चलते थे, लेकिन अब जल प्रवाह कम होने के कारण केवल छोटे जहाज ही इन नदियों में चल सकते हैं। अतः वनों का संरक्षण और पुनर्स्थापना जल चक्र को स्थिर करने के लिए आवश्यक है।
4. विकेन्द्रीकृत जल प्रबंधन की आवश्यकता
सतही जल भंडारण को बढ़ाने के लिए तालाबों, झीलों और जलाशयों की गहराई और क्षेत्रफल को बढ़ाने की आवश्यकता है। इससे जल संग्रहण की क्षमता बढ़ेगी और छोटे पैमाने पर जलाशयों का निर्माण कर जल संसाधनों का दीर्घकालिक संरक्षण किया जा सकेगा।
नव्यमानवतावाद की ओर बढ़ना आवश्यक
उन्होंने यह भी कहा कि मानवता के कल्याण और उज्ज्वल भविष्य के लिए नव्यमानवतावाद को अपनाना होगा, जिससे जल और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जा सके।
सेमिनार में जिले के अनेक पर्यावरणविद, समाजसेवी और स्थानीय नागरिक उपस्थित थे, जिन्होंने इस विचारधारा का समर्थन करते हुए जल संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास करने का संकल्प लिया।