प्रतीकात्मकता से परे आध्यात्मिक चेतना की यात्रा: आनंद मार्ग सेमिनार में विचार विमर्श
न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड:जमशेदपुर में आनंद मार्ग प्रचारक संघ द्वारा आयोजित प्रथम संभागीय सेमिनार के दूसरे दिन, आचार्य नभातीतानंद अवधूत ने “प्रतीकात्मकता की अवधारणा” विषय पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि परम सत्ता भाषा और प्रतीकों से परे है और इसे समझने के लिए साधकों को मानसिक प्रतीकीकरण को मानसिक-आध्यात्मिक अभिव्यक्ति में बदलने की आवश्यकता होती है।
परम सत्ता शब्दों और प्रतीकों से परे
आचार्य नभातीतानंद अवधूत ने कहा कि आध्यात्मिक यात्रा में परमपुरुष को व्यक्त करने की चुनौती गहरी है। गुरु उसे सीधे शब्दों में समझा नहीं सकता, क्योंकि शब्द और प्रतीक सापेक्ष होते हैं। इसलिए, आध्यात्मिक मार्गदर्शन में संकेतों और सूक्ष्म प्रतीकों का विशेष महत्व है। उन्होंने कृष्णाचार्य के उपदेशों का संदर्भ देते हुए कहा कि जैसे बहरा और मूक व्यक्ति संकेतों के माध्यम से संवाद करते हैं, वैसे ही साधक भी सूक्ष्म प्रतीकात्मकता के माध्यम से आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं।
मानसिक प्रतीकात्मकता और पुनर्जन्म का चक्र
उन्होंने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति के विचार और भावनाएँ “संस्कारों” के रूप में मन में सुप्त प्रतीकों के रूप में रहती हैं। ये प्रतीक अक्सर पिछले जन्मों से विरासत में आते हैं और पुनर्जन्म के चक्र में योगदान करते हैं। जब तक ये मानसिक प्रतीक भौतिक रूप से प्रकट होते रहते हैं, व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र में बंधा रहता है।
अभिव्यक्ति का विशाल ब्रह्मांड और सीमित मानव चेतना
आचार्य नभातीतानंद ने कहा कि ब्रह्मांडीय चेतना असीमित है, लेकिन मानव मन इसे केवल आंशिक रूप से समझ पाता है। हमारे विचारों, इंद्रियों और कलाओं के माध्यम से हम इस विशालता का एक छोटा सा अंश पकड़ पाते हैं। फिर भी, कला, संगीत, नृत्य और अन्य रचनात्मक अभिव्यक्तियाँ आध्यात्मिक अनुभूतियों को प्रकट करने का एक सशक्त माध्यम बन सकती हैं।
मानसिक प्रतीकीकरण से मुक्ति का मार्ग
उन्होंने समझाया कि मानसिक प्रतीकों को मानसिक-आध्यात्मिक तरंगों में बदलना ही मोक्ष प्राप्त करने की कुंजी है। जब व्यक्ति भौतिक अभिव्यक्तियों की आवश्यकता से परे उठ जाता है, तो वह उच्च आध्यात्मिक स्तर पर पहुँच जाता है और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो सकता है।
मुक्ति की दिशा में अगला कदम
उन्होंने कहा कि जो इस मार्ग को समझ चुके हैं, उनके लिए कार्य स्पष्ट है—मानसिक प्रतीकों को आध्यात्मिक अभिव्यक्ति की ओर निर्देशित करें। यह जीवन ही मुक्ति पाने का अवसर है, और यह किसी दूरस्थ भविष्य की कल्पना नहीं, बल्कि वर्तमान क्षण में प्राप्त की जा सकने वाली वास्तविकता है।
सेमिनार के अन्य वक्ताओं ने भी प्रतीकात्मकता और आध्यात्मिक साधना के विविध पहलुओं पर विचार साझा किए। समापन में साधकों को आध्यात्मिक चेतना के प्रति जागरूक रहने और अपनी साधना को गहन करने का संदेश दिया गया।