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दुनिया के कई संघर्ष अतिवादी रुख से उत्पन्न होते हैं, समाधान भगवान बुद्ध की शिक्षाओं में निहितः मोदी

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

नई दिल्ली:प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि दुनिया के कई संघर्ष संतुलित दृष्टिकोण के बताय अतिवादी रुख अपनाने से उत्पन्न होते हैं और ऐसी चुनौतियों का समाधान भगवान बुद्ध की शिक्षाओं मेंनिहित है।

उन्होंनि मध्यम मार्ग अपनाने और अतिवाद सेबचने पर चल देते हुए कहा कि संयम का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है और वैश्विक चुनौतियों से निपटने में मार्गदर्शन प्रदान करता है। संघर्ष से बचने के लिए थाईलैंड में आयोजित वैश्विक हिंदू-बीद्ध पहल हार्सवाद के चीथे संस्करण को एक वीडियो संदिश के जरिए संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि धम्म के सिद्धांतों में निहित एशिया की साझा परंपरा दुनिया को संकट से जूझने का जवाब देती है। उन्होंन कहा, हाहह्यदुनिया के कई मुद्दे संतुलित दृष्टिकोण के बजाय अतिवादी रुख अपनाने से उत्पन्न होते हैं। अतिवादी दृष्टिकोण संवर्ष,

पर्यावरण संकट और यहां तक कि तनाव से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देते हैं।

 

प्रधानमंत्री ने कहा, ह्यहाऐसी चुनौतियों का समाधान चगवान बुद्ध की शिक्षाओं में निहित है। उन्होंने हमसे मध्यम मार्ग अपनाने और अक्तिवाद से बचने का आग्रह किया। संगम का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है और वैश्विक चुनौतियों से निपटने में मार्गदर्शन प्रदान करता है। मोदी ने कहा कि आज संघर्ष लोगों और राष्ट्रों से आगे बढ़ रहे हैं तथा बानवता प्रकृति के साथ संघर्ष में तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने कहा, हाहाइससे पर्यावरण संकट उत्पन्न हो गया है जो हमारी पृथ्वी के लिए खतरा बन गया है। इस चुनौती का जवाब एशिया की साझा परंपराओं में निहित है, जो धम्म के सिद्धांतों में निहित है। हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म शितिवाद और अन्य एशियाई परंपराएं हमें प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना सिखाती हैं। हम खुद को प्रकृति से अलग

नहीं बल्कि उसका एक हिस्सा मानते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज प्रगति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय हमें भविष्य की पीढ़ियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी पर भी विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा, हाहायह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि संसाधनों का उपयोग विकास के लिए किया जाए, लालच के लिए नहीं। यह उल्लेख करते हुए कि संवाद का यह संस्करण एक धार्मिक गोलमेज सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है, जिसमें विविध धार्मिक नेता एक साथ आ रहे हैं, उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस मंच से मूल्यवान अंतर्हष्टि उभरेगी जो एक अधिक सामंजस्यपूर्ण दुनिया को आकार देगी। समृद्ध संस्कृति, इतिहास और विरासत के लिए मेजबान देश थाईलैंड की प्रशंसा करते हुए मोदी ने जोर देकर कहा कि थाईलैंड एशिया की साझा दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपराओं का एक सुंदर उ वाहरण है। भारत और थाईलैंड के बीच दो

 

हजार वर्षों से भी अधिक समय तक चले गहरे सांस्कृतिक संबंधों को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि रामायण और रामकियन दोनों देशों को जोड़ते हैं और भगवान बुद्ध के प्रति उनकी श्रद्धा उन्हें एकजुट करती है। बुद्ध का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा कि संयम का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है, जो वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में मार्गदर्शन प्रदान करता है। उन्होंन दोनों देशों के बीच कई क्षेत्रों में जीवंत साझेदारी का उल्लेख किया और कहा कि भारत की हाएक्ट ईस्ट नीति और थाईलैंड की हाएक्ट वेस्ट नीति एक-दूसरे की पूरक हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि संघर्ष का एक और कारण दूस रों को खुद सेमौलिक रूप से अलग समझना है। उन्होंने कहा, हाहह्यमतभेद दूरियों को जन्म देते हैं और दूरियां कलह में बदल सकती हैं। इसका मुकाबला करने के लिए, उन्होंने धम्मपद के एक श्रोक का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि हर कोई दर्द और

 

मृत्यु से डरता है। प्रधानमंत्री ने उल्लेख किया कि वह गुजरात के वडनगर से हैं और संसद में वाराणसी का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंन कहा कि यह एक सुंदर संयोग है कि भगवान बुद्ध से जुड़े स्थानों ने उनकी यात्रा को आकार दिया है। उन्होंने कहा, हाहह्यभगवान बुद्ध के प्रति हमारी श्रद्धा भारत सरकार की नीतियों में परिलक्षित होती है। मोदी ने कहा कि भारत ने बौद्ध सर्किट के हिस्से के रूप में महत्वपूर्ण बीद्ध स्थलों को जोड़ने के लिए पर्यटन बुनियादी ढांचे का विकास किया है। उन्होंने इस सर्किट पर यात्रा की सुविधा के लिए हाबुद्ध पूर्णिमा एक्सप्रेस विशेष ट्रेन और तीर्थयात्रियों के लाभ के लिए कुशीनगर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के उद्घाटन पर भी प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री ने बोधगया के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए विभिन्न विकास पहलोंकी भी घोषणा की और दुनिया भर के तीर्थयात्रियों, विद्वानों एवं भिक्षुओं को भारत आने के लिए आमंत्रित किया।

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