महाकुंभ ने बदली अर्थव्यवस्था, श्रद्धालुओं ने खानपान पर 33 हजार करोड़ खर्च किए, 300 करोड़ टोल प्लाजा को मिले, मेले से 3 लाख लोगों को सीधा फायदा
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न्यूज़ लहर संवाददाता
प्रयागराज : ‘महाकुंभ ने दुनिया को आस्था और आर्थिकी का बेहतर समन्वय दिया है। ऐसा कहीं नहीं होता कि किसी शहर के विकास पर साढ़े 7 हजार करोड़ खर्च करें, उससे उस प्रदेश की अर्थव्यवस्था साढ़े 3 लाख करोड़ बढ़ जाए। ऐसा दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता, लेकिन महाकुंभ ने ये करके दिखाया है।’
सीएम योगी आदित्यनाथ का ये बयान प्रयागराज महाकुंभ के समापन के दूसरे दिन (27 फरवरी) का है। आर्थिक विशेषज्ञ भी गिनाते हैं कि महाकुंभ में आए 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने औसतन 5 हजार रुपए खर्च किए, तो यह कुल 3.30 लाख करोड़ होता है। अनुमान के मुताबिक महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं ने परिवहन पर 1.50 लाख करोड़ खर्च किए। इसी तरह खानपान पर 33 हजार करोड़ से ज्यादा का खर्च किया।
महाकुंभ से पहले हमने अनुमान लगाया था कि होटल इंडस्ट्री का कारोबार 2500-3000 करोड़ रुपए का होगा, लेकिन महाकुंभ खत्म होने तक इसका कारोबार 40 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया। इस महाकुंभ में होटल के अंदर जो कमरे 3 हजार के थे, उन्हें 15-15 हजार रुपए तक में दिया गया। स्टेशन के पास जो कमरे 500-700 रुपए में मिल जाते थे, इस बार 4000-5000 में दिए गए। कुंभ में डोम सिटी बनाई गई। इसका 1 लाख से ज्यादा किराया रहा और फुल बुकिंग रही।
300 करोड़ रुपए टोल प्लाजा को मिले
प्रयागराज पहुंचने के कुल 7 रास्ते हैं। हर रास्ते पर टोल प्लाजा है। जो लोग निजी गाड़ियों से महाकुंभ आए, सभी टोल पर पेमेंट करके आए। प्रयागराज-मिर्जापुर मार्ग पर विंध्याचल में जो टोल प्लाजा है, वहां से कुंभ मेले में करीब 70 लाख गाड़ियां गुजरीं। इससे 50 करोड़ रुपए का राजस्व टोल प्लाजा को मिला। इसी तरह प्रयागराज-रीवा, प्रयागराज-चित्रकूट, प्रयागराज-कानपुर, प्रयागराज-लखनऊ मार्ग पर भी टोल प्लाजा हैं।
लखनऊ-प्रयागराज मार्ग पर तो 3 टोल प्लाजा हैं। एक कार वाले को करीब 350 रुपए देने पड़े। सभी का कुल आंकड़ा मिलाने पर पता चलता है कि करीब 300 करोड़ रुपए सिर्फ टोल प्लाजा को मिले।
मेले से 3 लाख लोगों को सीधा फायदा
महाकुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी से हुई। इसके पहले से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचने लगे थे। कुंभ का पहला हफ्ता उम्मीद के मुताबिक ही बीता। दूसरे हफ्ते यानी 21 जनवरी से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आने लगे। 21 से 29 जनवरी तक तो प्रशासन के लिए भीड़ को कंट्रोल करना मुश्किल हो गया। हर तरफ श्रद्धालु ही श्रद्धालु नजर आने लगे थे।
इस दौरान खाने-पीने की दुकानों से लेकर ट्रैवल्स, नाव और होटल इंडस्ट्री में बहुत तेजी से उछाल आया। इन सबसे करीब 3 लाख लोग जुड़े थे। सभी को उम्मीद से कहीं अधिक मुनाफा हुआ। 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर भगदड़ के बाद भीड़ अचानक कम हो गई। हमने कई दुकानदारों से बात की। वह कहते हैं- 29 जनवरी से लेकर 5 फरवरी तक लगा कि अपनी लागत निकालना मुश्किल होगा, लेकिन उसके बाद उमड़ी भीड़ ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।
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कैसे दुकानदारों की हुई कमाई
महाकुंभ के सेक्टर-2 में महाराजा कचौड़ी एंड प्रसाद भोग नाम से आउटलेट्स है। इसका टेंडर 92 लाख रुपए का हुआ था। यह पूरे साल का था। मेले में हर दिन करीब 8 से 9 हजार प्लेट कचौड़ी बिकी। एक प्लेट का रेट 50 रुपए था। इसके अलावा लड्डू, चाय, पानी बॉटल भी खूब बिकीं। एक दिन की अनुमानित बिक्री 5 लाख से ज्यादा रही। हालांकि दुकानदार कैमरे पर बिक्री और फायदे के बारे में नहीं बताते हैं।
महाकुंभ की सबसे प्राइम लोकेशन लेटे हुए हनुमान मंदिर के आसपास की है। यहां बजरंग भोग नाम से लड्डू की दुकान है। इस दुकान के संचालक ऑफ कैमरा बताते हैं, ‘हर दिन 2 से 3 टन लड्डू बिके। रोज 3 लाख की दुकानदारी हुई। कुल 48 लोग दुकान पर काम कर रहे हैं।’ आप यहां यह समझिए जो लड्डू पहले 160 रुपए किलो मिलते थे, उसकी कीमत बाद में 280 रुपए किलो थी। यहां भी मुनाफा 50-50 का रहा।
संगम से करीब 500 मीटर पहले संगम थाना है। इसी के पड़ोस में बलिया के सुशील गुप्ता पकौड़े-समोसे और कचौड़ी की दुकान लगाते हैं। यह दुकान ठेले पर है। सुशील कहते हैं, हमें यहां थाने के जरिए जगह मिल गई। 6 दिसंबर से दुकान लगाई। 400-500 प्लेट कचौड़ी रोज बिकी। समोसे-पकौड़े और चाय दिनभर बनती और बिकती रही। हर दिन 30-35 हजार रुपए की दुकानदारी हो जाती थी।’ हमने मुनाफे के बारे में पूछा तो कहते हैं, 60% लागत मान लीजिए, बाकी कमाई।
ठेला खींचने वाले निमित कुमार बिंद कहते हैं- हमारे इस ठेले की पहले कोई इज्जत नहीं थी, लेकिन कुंभ में बड़े से बड़े आदमी बैठते थे। दिनभर में 2-3 हजार रुपए कमा लेते थे। हमारे जैसे करीब 500 ठेले वालों (सवारियां ढोने) के लिए कुंभ अवसर बनकर आया। इतनी कमाई हम पांच साल में नहीं कर पाते।
सिविल लाइंस के साइड से मेले में एंट्री करते हुए तमाम ठेले नजर आते हैं। यहीं हमें पिंटू मिले। हमने पूछा कितनी कमाई रही? पिंटू कहते हैं- 3000 रुपए तक कमा लेते थे। पहले इसी ठेले (ठेलिया) के जरिए शहर में कबाड़ का काम करते थे।
मेला प्राधिकरण ने 8 हजार से ज्यादा दुकानों के लिए जगह बेची
महाकुंभ में कॉमर्शियल दुकानों के लिए जगह को लेकर शुरुआत से ही मारामारी रही। इसलिए जमीनों के दाम ज्यादा रहे। मेला प्राधिकरण ने इस बार करीब 8 हजार दुकानों का अलॉटमेंट किया। इसमें दुकानों की कीमत 10 हजार से लेकर 50 लाख रुपए तक रही।
कुंभ का बहुत सारा एरिया कैंटोनमेंट में आता है। यहां से भी दुकानों का अलॉटमेंट हुआ। यहां कई दुकानों की सालाना कीमत 10 लाख से लेकर 1 करोड़ रुपए तक थी। शहर में दुकानों के लिए जगह का अलॉटमेंट नगर निगम की तरफ से हुआ। 2019 में मेला प्राधिकरण ने 5 हजार 721 दुकानों के लिए जगह बेची थी। उस वक्त इससे कितना पैसा आया था, प्राधिकरण ने नहीं बताया था। 2013 के महाकुंभ में ऑफलाइन व्यवस्था थी। उस वक्त 2 हजार से ज्यादा दुकानों का अलॉटमेंट हुआ था। इस साल दुकानों के रेट पिछली बार के मुकाबले 4-5 गुना अधिक रहे। हालांकि कमाई के मामले में भी दुकानदार पहले से ज्यादा आगे रहे।
डिमांड बढ़ी तो लोगों को मुंहमांगी कीमत मिली
महाकुंभ में भारी भीड़ उमड़ी। इसके चलते चीजों की आपूर्ति प्रभावित होने लगी। खाने के सामानों की जितनी खपत थी, उस हिसाब से शहर में वह आ नहीं पा रहे थे। मेले के अंदर और आसपास चीजों के रेट दोगुना हो गए। जैसे जो 1 लीटर की पानी बॉटल 20 रुपए में मिलनी चाहिए, वह 30 रुपए की हो गई। शिकंजी, कुल्फी, चने समेत खाने की जो भी चीजें कुंभ से पहले जिस भी रेट में थीं, वह मेले के दौरान दोगुने रेट पर बिकने लगीं। लोगों के सामने कोई विकल्प नहीं था, इसलिए उन्होंने उसे खरीदा।
8 और 9 फरवरी को महाकुंभ में कुछ इस कदर भीड़ उमड़ी कि शहर को जोड़ने वाले सभी 7 रास्तों पर लंबा जाम लग गया। उस दिन हाईवे पर जो भी ढाबे थे, वहां एक चाय की कीमत 50 रुपए और खाने की एक प्लेट की कीमत 300 रुपए तक पहुंच गई।
बाकी के दिनों में भी यहां जो रेट रहा, वह पहले के मुकाबले अधिक रहा। इसी तरह से रिक्शे वालों ने भी मौका देखकर फायदा उठाया। 1-2 किलोमीटर के लिए भी 200-300 रुपए वसूले। बाइक वालों ने भी प्रति सवारी 1000 रुपए तक लिए। पुलिस ने अलग-अलग समय पर 100 से ज्यादा बाइक सीज कीं।
संगम में नाव के जरिए स्नान करने को लेकर मारामारी रही। इसकी डिमांड इतनी बढ़ी कि जिस घाट से संगम तक आम दिनों में 50 रुपए लगते हैं, महाकुंभ के दौरान 5-5 हजार रुपए तक लिए गए। तमाम लोगों ने शिकायत भी दर्ज करवाई, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। दिल्ली-पटना-जयपुर के लिए जो प्राइवेट बसें चलीं, उन्होंने भी अपना किराया दोगुना कर रखा था। दिल्ली तक आम दिनों में 1000-1200 रुपए किराया होता है, कुंभ के दौरान 2 हजार रुपए से ज्यादा लगा।
7,500 करोड़ खर्च करके 4 लाख करोड़ कमाना बड़ी बात
हमने महाकुंभ का अर्थशास्त्र समझने के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. प्रशांत घोष से मुलाकात की। वह कहते हैं- इतनी लंबी अवधि का कोई भी सांस्कृतिक-राजनीतिक या अन्य प्रकार का कोई आयोजन विश्व में कहीं नहीं होता। 45 दिनों का यह महाकुंभ 4 हजार हेक्टेयर में फैला रहा। जितनी भीड़ यहां आई, उतनी अब तक कहीं भी इकट्ठा नहीं हुई। 66 करोड़ लोग आए। तीन बड़े देश अमेरिका, रूस और इंग्लैंड की आबादी भी इतनी नहीं है।