होली में प्राकृतिक रंगों का उपयोग करें, आंखों और सेहत को रखें सुरक्षित: डॉ. मनोज सिंह मुंडा, नेत्र पदाधिकारी, सदर अस्पताल चाईबासा*

न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड: होली का पर्व रंगों और गुलाल के बिना अधूरा लगता है, लेकिन इस दौरान रंगों का चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है। बाजार में बिकने वाले अधिकांश रंग और गुलाल केमिकल्स से बने होते हैं, जो न केवल त्वचा, आंखों और शरीर के लिए हानिकारक हो सकते हैं, बल्कि एलर्जी और अन्य समस्याओं का कारण भी बन सकते हैं। रंगों से त्वचा में जलन, आंखों में संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। साथ ही, रंग कानों और बालों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
फागुन माह में कई प्रकार के प्राकृतिक फूलों से होली के रंग बनाए जा सकते हैं, जो न केवल सुरक्षित हैं, बल्कि शरीर को किसी प्रकार का नुकसान भी नहीं पहुंचाते।
प्रमुख रूप से पलाश के फूल, गेंदे के फूल, गुड़हल के फूल, गुलदाउदी के फूल और गुलाब के फूलों से प्राकृतिक रंग तैयार किया जा सकता है। इनमें से पलाश के फूल तो गांव-गांव में आसानी से मिल जाते हैं और इनसे बनाए गए रंगों का कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता।
प्राकृतिक रंगों के फायदे:
प्राकृतिक रंग एलर्जी से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए सुरक्षित होते हैं।
इन रंगों से आंखों या मुंह में जाने पर कोई खतरा नहीं होता।
प्राकृतिक रंग नाक, कान और गले के लिए भी हानिरहित होते हैं।
होली के केमिकल रंगों से होने वाली समस्याएं:
केमिकल रंग त्वचा में एलर्जी, खुजली और ड्राइनेस पैदा कर सकते हैं।
आंखों में रंग जाने से आंखें लाल होना, पानी गिरना और संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। अगर संक्रमण का इलाज समय पर नहीं किया गया तो यह गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है।
अस्थमा या सांस के मरीजों के लिए केमिकल रंग हानिकारक हो सकते हैं।
इस होली, सुरक्षित और प्राकृतिक रंगों का चुनाव करके हम अपनी त्वचा, आंखों और सेहत को सुरक्षित रख सकते हैं।