फर्जी अधिवक्ता के झूठे मुकदमे के खिलाफ अधिवक्ताओं का मोर्चा: वरीय आरक्षी अधीक्षक से निष्पक्ष जांच की मांग
न्यूज लहर संवाददाता
झारखंड:जमशेदपुर अधिवक्ता संघ में उस समय हड़कंप मच गया जब एक फर्जी अधिवक्ता अमित कुमार श्रीवास्तव उर्फ अमित वर्मा द्वारा अधिवक्ता श्रीराम दुबे पर झूठे रंगदारी और मारपीट के आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई गई। इस मामले को लेकर अधिवक्ताओं के एक समूह ने दिनांक 11 अप्रैल 2025 को पूर्वी सिंहभूम के वरीय आरक्षी अधीक्षक को एक संयुक्त हस्ताक्षरयुक्त आवेदन पत्र सौंपते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की।
आवेदन पत्र में अधिवक्ताओं ने विस्तार से बताया कि कैसे फर्जी अधिवक्ता अमित कुमार श्रीवास्तव के खिलाफ 27 फरवरी 2025 को अधिवक्ता श्रीराम दुबे ने फर्जीवाड़े की शिकायत दर्ज कराई थी। उक्त शिकायत पर बिष्टुपुर थाना में एफआईआर संख्या 43/2025, आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471, 472 और 120बी के तहत मामला दर्ज हुआ। इसके बाद आरोपी को नोटिस भी दिया गया, परंतु अचानक 16 मार्च 2025 को अमित श्रीवास्तव ने खुद पर लगे मुकदमे से बचने और श्रीराम दुबे पर दबाव बनाने की नीयत से उनके खिलाफ रंगदारी और पिस्तौल सटाकर धमकाने जैसे गंभीर आरोप लगाते हुए एक झूठा मामला दर्ज करा दिया।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि बिष्टुपुर थाना प्रभारी उमेश कुमार ठाकुर ने बिना किसी स्थलीय निरीक्षण या स्वतंत्र जांच के ही अधिवक्ता श्रीराम दुबे के खिलाफ एफआईआर संख्या 46/2025, बी.एन.एस. 2023 की धारा 126(2), 115(2), 109, 352, 308(4), 303(2) के तहत गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया।
अधिवक्ताओं ने अपने पत्र में इस बात पर ज़ोर दिया कि जिस स्थान पर कथित घटना हुई बताई गई – पुराना न्यायालय परिसर – वह दिन के समय पूरी तरह भीड़-भाड़ वाला क्षेत्र होता है जहाँ कई टाइपिस्ट, फॉर्म विक्रेता और अधिवक्ता मौजूद रहते हैं। यदि कोई ऐसी घटना वास्तव में होती तो उसके चश्मदीद अवश्य होते। इस आधार पर उन्होंने आरोप को पूरी तरह निराधार बताया।
अधिवक्ताओं ने वरीय आरक्षी अधीक्षक से आग्रह किया कि इस पूरे मामले को संज्ञान में लेते हुए झूठी प्राथमिकी दर्ज कराने वाले अमित कुमार श्रीवास्तव के खिलाफ बी.एन.एस. 2023 की धारा 248 (पूर्ववर्ती 211 भा.दं.वि.) के तहत कार्यवाही की जाए ताकि एक सम्मानित अधिवक्ता की छवि को धूमिल करने का प्रयास विफल हो और कानून का दुरुपयोग करने वालों पर सख्त संदेश जाए।
उन्होंने यह भी मांग की कि पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच किसी अन्य अधिकारी से कराई जाए या फिर थाना प्रभारी एवं अनुसंधानकर्ता को उचित दिशा-निर्देश देकर सत्य को सामने लाने की पहल की जाए।
संयुक्त रूप से हस्ताक्षरित इस आवेदन में अधिवक्ता समुदाय ने कहा कि वे न्याय व्यवस्था में विश्वास रखते हैं, परंतु ऐसे झूठे मुकदमों से यदि सम्मानित अधिवक्ताओं की गरिमा खतरे में पड़ी, तो यह पूरे समुदाय के लिए चिंताजनक होगा।
इस मामले ने एक बार फिर न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता और निष्पक्षता की आवश्यकता को रेखांकित किया है। अब देखना यह होगा कि पुलिस प्रशासन इस प्रकरण में कितना संवेदनशील रुख अपनाता है।