धर्मगुरुओं ने संभाली बाल विवाह रोकथाम की कमान, पूर्वी सिंहभूम में अक्षय तृतीया पर अभियान को मिली बड़ी सफलता

न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड : पूर्वी सिंहभूम जिले में बाल अधिकारों की सुरक्षा और बाल विवाह की रोकथाम के लिए कार्यरत संगठन आदर्श सेवा संस्थान ने अक्षय तृतीया और शादी-ब्याह के मौसम को देखते हुए विभिन्न धर्मों के विवाह संपन्न कराने वाले पुरोहितों के बीच विशेष जागरूकता अभियान चलाया। इस प्रयास को व्यापक सफलता मिली है और जिले के सभी प्रमुख धर्मगुरुओं ने इस मुहिम का समर्थन करते हुए बाल विवाह के खिलाफ एकजुट होने का संकल्प लिया है।
आदर्श सेवा संस्थान के निदेशक डॉ. निर्मला शुक्ला ने बताया कि धर्मगुरुओं से मिला समर्थन अत्यंत उत्साहवर्धक और अभिभूत करने वाला है। उन्होंने कहा, “इस अभियान के सकारात्मक नतीजों को देखते हुए हमें पूरा विश्वास है कि इस अक्षय तृतीया पर जिले में एक भी बाल विवाह नहीं होगा।” अब जिले के कई मंदिरों और मस्जिदों के सामने स्पष्ट रूप से बोर्ड लगाए गए हैं जिन पर लिखा है – ‘यहां बाल विवाह की अनुमति नहीं है।’
यह पहल जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (JRC) नेटवर्क के तहत चलाए जा रहे ‘चाइल्ड मैरिज फ्री इंडिया’ अभियान का हिस्सा है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक देश से बाल विवाह को पूरी तरह समाप्त करना है। JRC देश के 416 जिलों में 250 से अधिक नागरिक संगठनों के साथ मिलकर काम कर रहा है और अब तक दो लाख से अधिक बाल विवाहों को रुकवाने के साथ साथ पांच करोड़ से ज्यादा लोगों को बाल विवाह के खिलाफ शपथ दिला चुका है।
पूर्वी सिंहभूम में JRC के सहयोगी संगठन आदर्श सेवा संस्थान ने भी स्थानीय प्रशासन के सहयोग से वर्ष 2023-24 में ही 321 बाल विवाहों को रोकने में सफलता हासिल की है। संगठन जेआरसी के संस्थापक भुवन ऋभु द्वारा सुझाई गई समग्र रणनीति पर कार्य कर रहा है, जिसे उनकी पुस्तक ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन: टिपिंग प्वाइंट टू एंड चाइल्ड मैरिज’ में विस्तार से बताया गया है।
डॉ. निर्मला शुक्ला ने बताया कि देश में अभी भी बाल विवाह के प्रति व्यापक जागरूकता की कमी है। बहुत से लोगों को यह जानकारी नहीं है कि बाल विवाह निषेध अधिनियम (PCMA), 2006 के तहत यह एक दंडनीय अपराध है। इसमें शामिल किसी भी व्यक्ति – चाहे वह बाराती हो, लड़की के पक्ष का सदस्य हो, कैटरर, डेकोरेटर, हलवाई, माली, बैंडवाला या विवाह स्थल का मालिक – सभी को सजा या जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ सकता है। यहां तक कि विवाह संपन्न कराने वाले पंडित, मौलवी या पादरी भी दंडनीय अपराध में शामिल माने जाएंगे।
डॉ. शुक्ला ने जोर देकर कहा, “हमने धर्मगुरुओं को समझाया कि बाल विवाह कोई परंपरा नहीं बल्कि बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन और अपराध है। अठारह वर्ष से कम उम्र की बच्ची से विवाह के उपरांत यौन संबंध बनाना भी पॉक्सो कानून के तहत बलात्कार की श्रेणी में आता है।”
उन्होंने कहा कि बेहद संतोषजनक बात यह है कि अब पंडित और मौलवी भी इस सच्चाई को समझते हुए न केवल बाल विवाह रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं, बल्कि स्वयं आगे बढ़कर इसकी रोकथाम की शपथ ले रहे हैं। डॉ. शुक्ला ने विश्वास जताया कि अगर देश भर में पुरोहित वर्ग इस दिशा में सक्रिय हो जाए तो बहुत जल्द भारत को बाल विवाह मुक्त बनाया जा सकता है।
अभियान की सफलता पर डॉ. शुक्ला ने कहा, “हमारे प्रयास और धर्मगुरुओं के समर्थन से पूर्वी सिंहभूम को शीघ्र ही बाल विवाह मुक्त जिला बनाने का सपना साकार होगा।”