जमशेदपुर ने खोया निर्भीक पत्रकार और साहित्यकार : गंगा प्रसाद ‘कौशल’ का अविस्मरणीय योगदान

न्यूज़ लहर संवाददाता
जमशेदपुर।जमशेदपुर समेत सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता जगत ने एक अमूल्य रत्न, गंगा प्रसाद ‘कौशल’ को खो दिया। उनका व्यक्तित्व जितना आकर्षक था, उतना ही समाज और साहित्य के लिए समर्पित भी। लम्बा कद, गौरवर्ण, सौम्य मुखमंडल और शालीनता की आभा से युक्त कौशल जी सहज ही मिलने-जुलने वालों को प्रभावित कर लेते थे। उनका संवेदनशील हृदय अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध सदा जागरूक रहता था। वे कला, साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने कार्यों के लिए सर्वत्र सम्मानित थे।
कौशल जी का जीवन समाज सेवा के लिए समर्पित था। वे पीड़ितों के लिए न्याय दिलाने, भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध संघर्ष करने, झगड़ों के समाधान, असहायों की रक्षा और बेरोजगारों को रोजगार दिलाने के प्रयास में सदैव व्यस्त रहते थे। इन सबके बावजूद, वे अपने निजी हितों की कभी परवाह नहीं करते थे। उनका सार्वजनिक जीवन इतना व्यस्त था कि कई बार उन्हें अपने घर-परिवार और भोजन तक की सुध नहीं रहती थी।
पत्रकारिता के क्षेत्र में कौशल जी का योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने ‘मजदूर आवाज’ नामक साप्ताहिक पत्र का संपादन किया, जो मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए प्रकाशित होता था। बाद में, ‘आज़ाद प्रेस’ की स्थापना कर ‘आज़ाद मजदूर’ साप्ताहिक का संपादन प्रारंभ किया। सरकारी मान्यता और विज्ञापन न मिलने के बावजूद, उन्होंने मजदूरों और कर्मचारियों के अधिकारों के लिए अपनी निर्भीक लेखनी को कभी झुकने नहीं दिया। टाटा कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें कई बार प्रलोभन देने की कोशिश की, लेकिन कौशल जी अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे। इसके चलते उन्हें कई बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, परन्तु उन्होंने कभी भी अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया।
साहित्य के क्षेत्र में भी कौशल जी का योगदान उल्लेखनीय रहा। उन्होंने ‘वीर बालक’, ‘गोविन्द गुप्त’, ‘नयन-नीर’, ‘सुषमा’, ‘बच्चों के फूल’, ‘नाविरा’, ‘नूरजहाँ’, ‘रागा’, ‘बापू’, ‘बबाई’, ‘अन्तिम इच्छा’, ‘सुकेशिनी’ जैसी दर्जनों कृतियाँ हिन्दी साहित्य को समर्पित कीं। ‘वीर बालक’ को भारत सरकार ने पुरस्कृत भी किया। उन्होंने विश्व प्रसिद्ध कहानियों का अनुवाद और संपादन भी किया, जिससे हिन्दी साहित्य समृद्ध हुआ।
कौशल जी एक जन्मजात कवि, भावुक गीतकार, विचारशील कथाकार और निर्भीक पत्रकार थे। वे समाज और साहित्य के लिए सच्चे अर्थों में समर्पित थे। उनका आत्मविश्वास, कर्मठता और सादगी आज भी प्रेरणा देती है। उन्होंने कभी भी निजी सुविधाओं के लिए न तो किसी से याचना की और न ही किसी के आगे झुके।
गंगा प्रसाद ‘कौशल’ के निधन से जमशेदपुर के जन-जीवन में जो रिक्तता आई है, उसकी पूर्ति युगों तक संभव नहीं होगी। वे साहित्य, पत्रकारिता और समाज सेवा के क्षेत्र में एक अमिट छाप छोड़ गए हैं। उनका जीवन और कृतित्व आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बना रहेगा।