41 साल बाद फिर जगी उम्मीद: तुलबुल बैराज प्रोजेक्ट से बदल जाएगी कश्मीर की किस्मत, पाकिस्तान में मचा हड़कंप

न्यूज़ लहर संवाददाता
जम्मू कश्मीर:कश्मीर घाटी की तस्वीर बदलने वाला बहुचर्चित तुलबुल नेविगेशन बैराज प्रोजेक्ट आखिरकार 41 साल बाद फिर से शुरू होने जा रहा है। इस परियोजना की बहाली न सिर्फ जम्मू-कश्मीर के आर्थिक विकास के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है, बल्कि इससे पाकिस्तान में भी खलबली मच गई है। लंबे समय से विवादों में घिरे इस प्रोजेक्ट को 1987 में पाकिस्तान के विरोध के चलते रोकना पड़ा था, लेकिन अब भारत सरकार ने सिंधु जल संधि को ठंडे बस्ते में डालते हुए इसे दोबारा शुरू करने का फैसला लिया है।
तुलबुल बैराज प्रोजेक्ट, जिसे वुलर बैराज के नाम से भी जाना जाता है, झेलम नदी के मुहाने पर स्थित है। इसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर के अनंतनाग, श्रीनगर और बारामुल्ला जिलों को जलमार्ग से जोड़ना और साल भर नौवहन को संभव बनाना है। साथ ही, सर्दियों के महीनों में जब नदी में जलस्तर कम हो जाता है, तब भी पानी की उपलब्धता बनी रहे, जिससे डाउनस्ट्रीम बिजली उत्पादन को भी बढ़ावा मिले। इस परियोजना के पूरा होने से कश्मीर घाटी में व्यापार, पर्यटन और स्थानीय रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे, जिससे क्षेत्र की आर्थिक मजबूती को पंख लगेंगे।
सिंधु जल संधि के अनुच्छेद III और IV के तहत भारत को सिंधु नदी बेसिन के जल का सीमित उपयोग करने का अधिकार है। हालांकि, पाकिस्तान का आरोप है कि भारत इस प्रोजेक्ट के जरिए उसके हिस्से के पानी पर नियंत्रण करना चाहता है, जबकि भारत का दावा है कि वह संधि के दायरे में रहकर ही परियोजना को आगे बढ़ा रहा है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को ठंडे बस्ते में डाल दिया है, जिससे पाकिस्तान की चिंता और बढ़ गई है।
इस प्रोजेक्ट को लेकर जम्मू-कश्मीर की राजनीति भी गर्माई हुई है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया पर वुलर झील और तुलबुल बैराज के अधूरे निर्माण का वीडियो साझा करते हुए इसे क्षेत्र के विकास के लिए जरूरी बताया। वहीं, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने इस कदम को लेकर सवाल उठाए और कहा कि पानी को राजनीतिक हथियार बनाना घाटी के हित में नहीं है। उन्होंने अब्दुल्ला परिवार की राजनीतिक प्रतिबद्धताओं पर भी तंज कसा।
कुल मिलाकर, 41 साल बाद तुलबुल बैराज प्रोजेक्ट का फिर से शुरू होना जम्मू-कश्मीर के लिए एक नई उम्मीद की किरण है। यह परियोजना न सिर्फ घाटी की आर्थिक तस्वीर बदलने की क्षमता रखती है, बल्कि इससे भारत-पाकिस्तान के बीच जल विवाद भी एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। अब देखना यह है कि आने वाले समय में यह प्रोजेक्ट कश्मीर की किस्मत बदल पाएगा या फिर राजनीतिक और कूटनीतिक विवादों में उलझकर रह जाएगा।