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ईचा डैम के विरोध में फूटा आदिवासियों का गुस्सा, बिर सिंह बिरुली ने सरकार पर लगाए गंभीर आरोप

 

चाईबासा: ईचा खरकई डैम को लेकर एक बार फिर आदिवासी-मूलवासी समुदाय का आक्रोश सामने आया है। ईचा खरकई बांध विरोधी संघ कोल्हान के अध्यक्ष बिर सिंह बिरुली ने राज्य सरकार पर आदिवासी अस्मिता और अस्तित्व को खतरे में डालने का आरोप लगाते हुए कहा है कि “अबुआ सरकार” आदिवासियों की पहचान को डुबोकर पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाना चाहती है।

गुरुवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति में बिरुली ने कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देकर डैम निर्माण को फिर से शुरू करना चाहती है, जबकि यह परियोजना 87 गांवों को डुबोने वाली है, जिससे हजारों आदिवासी परिवार विस्थापित हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि यह “डैम नहीं, आदिवासियों के लिए विनाश का प्रस्ताव है।”

सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक डैम पर 1397 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं, जबकि याचिकाकर्ता संतोष कुमार सोनी ने हाई कोर्ट में दावा किया है कि खर्च की राशि 6100 करोड़ रुपये से अधिक है। वहीं सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक अब भी 20 हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण अधूरा है, और 126 गांवों की ग्राम सभाओं की स्वीकृति जरूरी है।

बिरुली ने आरोप लगाया कि सरकार डैम के डिजाइन को छोटा दिखाकर कह रही है कि अब केवल 18 गांव जलमग्न होंगे, जबकि हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। उन्होंने कहा कि यह सब केवल टाटा और रूंगटा जैसे पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। “अबुआ सरकार अब पूंजीपति बबुआ सरकार बन चुकी है,” – ऐसा तीखा आरोप भी उन्होंने लगाया।

उन्होंने यह भी याद दिलाया कि वर्ष 2014 में कल्याण मंत्री चंपई सोरेन की अध्यक्षता में बनी समिति ने डूब क्षेत्र का दौरा कर परियोजना रद्द करने की अनुशंसा की थी, जिसकी रिपोर्ट 10 अक्टूबर 2014 को सौंपी गई थी। इसके बावजूद सरकार अब इसे दोबारा शुरू करने की कोशिश कर रही है।

बिरुली ने राज्य सरकार की शराब नीति पर भी निशाना साधते हुए कहा कि सरकार आदिवासी बहुल क्षेत्रों में खुलेआम शराब बेचकर समाज को बर्बाद करना चाहती है। उन्होंने कहा कि ईचा डैम को लेकर कोल्हान के 87 गांवों में उग्र आंदोलन जारी है और “बांध विरोधी संघ” डैम को रद्द कराने के लिए लगातार संघर्षरत है।

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