टाटा मेन हॉस्पिटल, नोवामुंडी में रक्त सेवा सदस्यों की प्रेरणादायक पहल रक्त दान नहीं, रक्त क्रांति है–संतोष पंडा

गुवा
टाटा मेन हॉस्पिटल नोवामुंडी में एक प्रेरणादायक आयोजन के तहत रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें रक्त सेवा सदस्य ग्रुप से जुड़े समर्पित सेवकों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस रक्तदान शिविर में कुल सात रक्तदाताओं ने स्वेच्छा से रक्तदान कर मानवता की मिसाल पेश की। कार्यक्रम की अध्यक्षता टाटा मेन हॉस्पिटल के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. धीरेन्द्र कुमार ने की। उनके साथ शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. तापस सारंगी, डॉ. विजय रमेश टोपनो, डॉ. घनश्याम बिहारी, हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन इंचार्ज निरंजन मिश्रा, ब्लड बैंक कर्मी आलोक सरकार, किरण छेत्री, जुली लोहार और पूजा लोहार आदि उपस्थित रहे।
सभी ने रक्तदाताओं का उत्साहवर्धन किया और उनके लिए पौष्टिक आहार की व्यवस्था भी की गई। इस शिविर में रक्त सेवा सदस्य ग्रुप के संस्थापक और समाजसेवी संतोष पंडा ने भी अपना चौथा रक्तदान कर युवाओं को प्रेरित किया। उनके साथ किरीबुरु से सेवक दीपक ठाकुर, सेवक समीर पाठक, सेवक विजय साहू, सेवक राकेश रजक और जगन्नाथपुर से सेवक अमन पुनीत गोप ने भी निःस्वार्थ भाव से रक्तदान किया। संतोष पंडा ने जानकारी दी कि अब तक झारखंड और ओडिशा में रक्त सेवा सदस्य ग्रुप की कुल 15 शाखाएं कार्यरत हैं। जिसमें झारखण्ड में सारंडा रक्त सेवा सदस्य ग्रुप,मनोहरपुर रक्त सेवा सदस्य ग्रुप,गुवा रक्त सेवा सदस्य ग्रुप,बड़ाजामदा रक्त सेवा सदस्य ग्रुप,नोवामुंडी रक्त सेवा सदस्य ग्रुप,जगन्नाथपुर रक्त सेवा सदस्य ग्रुप,चाईबासा रक्त सेवा सदस्य ग्रुप,चक्रधरपुर रक्त सेवा सदस्य ग्रुप,युवा शक्ति रक्त सेवा सदस्य ग्रुप है। वहीं ओडिशा में बड़बिल रक्त सेवा सदस्य ग्रुप,जोड़ा रक्त सेवा सदस्य ग्रुप,चंपुआ रक्त सेवा सदस्य ग्रुप,केंदुझर रक्त सेवा सदस्य ग्रुप तथा राउरकेला रक्त सेवा सदस्य ग्रुप है। संतोष पंडा ने बताया कि उन्होंने 15वीं शाखा को भारत के महान औद्योगिक और समाजसेवी व्यक्तित्व सर रतन टाटा को समर्पित किया है। इस समूह में टाटा स्टील के कर्मचारी और ठेका श्रमिक बड़ी संख्या में जुड़ रहे हैं और नियमित रक्तदान कर रहे हैं। रतन टाटा न केवल भारत के औद्योगिक विकास के प्रतीक हैं, बल्कि उन्होंने सामाजिक क्षेत्र में भी जो योगदान दिया है, वह अतुलनीय है। टाटा स्टील के हर कर्मचारी का रक्तदान उनके लिए श्रद्धांजलि के समान है। संतोष पंडा ने बताया कि अब तक उनके नेतृत्व में 6358 युवा ‘रक्त सेवा सदस्य ग्रुप’ से जुड़ चुके हैं और हजारों गंभीर मरीजों की जान बचाने में सहयोग कर चुके हैं। उन्होंने इस आंदोलन को ‘रक्त क्रांति’ करार देते हुए कहा यह सिर्फ रक्तदान नहीं है, यह एक सामाजिक आंदोलन है-एक रक्त क्रांति। हमारा संकल्प है कि हमारे क्षेत्र के किसी भी अस्पताल से एक भी मरीज रक्त के बिना लौटे, ऐसा कभी न हो।