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बच्चों की जान जोखिम में डालकर भेजा साइकिल लेने, सरकारी लापरवाही से उठे सवाल

 

गुवा।पश्चिमी सिंहभूम जिला में मुख्यमंत्री साइकिल योजना के तहत करमपदा स्कूल के 64 छात्रों को साइकिल वितरण कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जिस तरीके से नोवामुंडी भेजा गया, उसने सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सब्जी और सामान ढोने वाले दो पिकअप वैन में बच्चों को ठूंस-ठूंसकर बैठाया गया और उन्हें लगभग 50 किलोमीटर दूर खतरनाक पहाड़ी रास्तों से होते हुए भेजा गया। इस दौरान न तो किसी प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था की गई थी, और न ही बच्चों की संख्या के अनुसार उपयुक्त वाहन की व्यवस्था की गई।

स्थानीय विधायक सोनाराम सिंकू की उपस्थिति में आयोजित इस साइकिल वितरण कार्यक्रम में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जो तरीका अपनाया गया, वह चौंकाने वाला था। खुले वाहनों में खड़े होकर यात्रा कर रहे बच्चों के चेहरे पर साइकिल मिलने की खुशी तो साफ झलक रही थी, लेकिन उनकी यह खुशी जान जोखिम में डालकर हासिल की जा रही थी। जिस मार्ग से उन्हें भेजा गया, वह बेहद संकरा, मोड़दार और घाटियों से घिरा हुआ है। ऐसी स्थिति में बच्चों को बिना किसी सुरक्षा के भेजना एक बड़ी दुर्घटना को दावत देने जैसा था।

स्कूल के एक स्टाफ ने बताया कि सरकार की ओर से इस यात्रा के लिए कोई सुविधा नहीं दी गई। मजबूरी में शिक्षकों ने अपने निजी खर्च से कैंपर वाहन किराए पर लेकर व्यवस्था की। कार्यक्रम के बाद बच्चे या तो साइकिल चलाकर लौटेंगे या फिर पैदल। सवाल यह उठता है कि जब साइकिल बच्चों को ही देनी थी, तो वितरण विद्यालय में ही क्यों नहीं किया गया? क्या यह जरूरी था कि उन्हें जान जोखिम में डालकर इतनी लंबी दूरी तय करने के लिए मजबूर किया जाए?

स्थानीय लोगों ने इस पूरे घटनाक्रम पर गहरी नाराजगी जताई है। नोवामुंडी, बड़ाजामदा और मेघाहातूबुरु क्षेत्र के नागरिकों का कहना है कि क्या बच्चों की जान इतनी सस्ती हो गई है कि उन्हें इस तरह खुले वाहनों में भरकर भेजा जाए? क्या सरकारी योजनाओं का मकसद केवल फोटो खिंचवाना रह गया है? लोगों का यह भी कहना है कि यदि रास्ते में कोई हादसा हो जाता, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेता—स्कूल, प्रशासन या वह सिस्टम जो योजनाएं तो बनाता है, पर ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर होता है?

यह पूरा मामला मुख्यमंत्री साइकिल योजना के मूल उद्देश्य को ही कठघरे में खड़ा करता है। यह योजना बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए शुरू की गई थी, लेकिन जब साइकिल पाने के लिए ही उन्हें जान जोखिम में डालनी पड़े, तो यह योजना सुविधा नहीं, खतरा बन जाती है।

घटना को लेकर आम जनता ने प्रशासन से तत्काल जवाबदेही तय करने और भविष्य में ऐसी लापरवाही न दोहराने की मांग की है। साथ ही यह भी कहा गया है कि यदि बच्चों की सुरक्षा से ऐसे ही समझौता किया जाता रहा, तो सरकार की तमाम योजनाएं केवल कागज़ों तक ही सीमित रह जाएंगी।

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