दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन नहीं रहे: झारखंड की राजनीति को लगा अपूरणीय आघात

न्यूज़ लहर संवाददाता
नई दिल्ली:झारखंड की राजनीति में शोक की लहर दौड़ गई है। राज्य के सबसे बड़े जननेता, झारखंड आंदोलन के प्रणेता और आदिवासी समाज की बुलंद आवाज माने जाने वाले ‘दिशोम गुरु’ शिबू सोरेन का सोमवार को दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। लंबे समय से बीमार चल रहे शिबू सोरेन का इलाज अस्पताल में चल रहा था। उनके निधन से झारखंड ने एक युग पुरुष को खो दिया है।
झारखंड के वरिष्ठतम नेताओं में गिने जाने वाले और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक नेताओं में प्रमुख शिबू सोरेन का निधन राज्य के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उन्हें झारखंड के आदिवासी समाज की आत्मा और संघर्ष का प्रतीक माना जाता था। अपने जीवनकाल में उन्होंने कई बार केंद्र सरकार में मंत्री पद संभाला और झारखंड की अलग पहचान, भाषा, संस्कृति और हक-अधिकारों के लिए सतत संघर्ष किया।
उनके निधन की खबर से पूरे राज्य में गम का माहौल है। राजनीतिक गलियारों से लेकर गांव-कस्बों तक शोक की लहर फैल गई है। सामाजिक संगठनों और जनजातीय समुदायों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके योगदान को याद किया।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जो उनके पुत्र भी हैं, ने शोक जताते हुए कहा, “मेरे पिता नहीं रहे, यह केवल मेरा व्यक्तिगत नुकसान नहीं बल्कि झारखंड की आत्मा को गहरी पीड़ा देने वाला क्षण है। उन्होंने जो संघर्ष और रास्ता दिखाया, वह हमेशा हम सबके लिए प्रेरणा बना रहेगा।”
शिबू सोरेन का जीवन आदिवासी समाज के हक और अस्तित्व के लिए समर्पित था। उन्होंने झारखंड आंदोलन को मजबूत नींव दी और राज्य निर्माण में अहम भूमिका निभाई। लोग उन्हें ‘दिशोम गुरु’ कहकर सम्मान देते थे। उनके निधन के साथ झारखंड की राजनीति का एक स्वर्णिम अध्याय समाप्त हो गया है।
सरकार द्वारा उनके अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान के साथ किए जाने की संभावना है। पूरे राज्य में शोक सभा, श्रद्धांजलि कार्यक्रम और कई संस्थानों में अवकाश की घोषणा की जा सकती है।
झारखंड की माटी से उठे इस महान नेता को आज पूरा राज्य नम आंखों से विदा कर रहा है।