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तीन साल से मूकबधिर युवक दीपक बारीक न्याय का इंतजार कर रहा, व्यवस्था की बेरुखी से त्रस्त परिवार

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

चाईबासा।पश्चिमी सिंहभूम जिला स्थित मंझारी प्रखंड अंतर्गत भारभरिया पंचायत के मूकबधिर युवक दीपक बारीक की जिंदगी पिछले तीन वर्षों से सिर्फ एक सवाल के इर्द-गिर्द घूम रही है – क्या उसकी आवाज़ न होना ही उसके अधिकारों से वंचित रहने का कारण बन गया है? तमाम सरकारी योजनाओं और संवैधानिक अधिकारों के बावजूद दीपक न तो विकलांग पेंशन का लाभ पा सका, न प्रमाण पत्र, न ही किसी भी प्रकार की चिकित्सा सहायता।

गुरुवार को दीपक के पिता हिमांशु बारीक बताते हैं कि बेटे की दिव्यांगता से संबंधित सभी दस्तावेज समय पर प्रखंड कार्यालय, पंचायत भवन और सरकारी अस्पतालों में जमा कर दिए गए थे। लेकिन तीन वर्षों के दौरान केवल आश्वासन ही मिले हैं। परिवार कई बार अधिकारियों के दरवाज़े पर दस्तक देता रहा, मगर जवाब में मिली सिर्फ खामोशी और बेरुखी।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मामला प्रशासन की संवेदनहीनता का जीता-जागता उदाहरण है। वे पूछते हैं, “क्या दीपक का मूक और बधिर होना ही उसकी सबसे बड़ी सज़ा बन गया है?” परिवार की पीड़ा अब गांव की collective conscience का हिस्सा बन गई है, जहां हर कोई इस अन्याय को लेकर आक्रोशित है।

 

इस मामले को मानव अधिकार परिषद के झारखंड प्रदेश महासचिव रामहरि गोप ने गंभीरता से उठाया है। उन्होंने प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठाते हुए कहा कि दीपक की उपेक्षा केवल एक व्यक्ति की अनदेखी नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की संवेदनहीनता को उजागर करती है। उन्होंने कहा, “जब एक नागरिक सभी दस्तावेजों और प्रक्रियाओं को पूरा करने के बावजूद हक से वंचित रहता है, तो यह स्पष्ट करता है कि व्यवस्था भीतर से सड़ चुकी है।”

 

रामहरि गोप ने इस विषय में पश्चिमी सिंहभूम के उपायुक्त को ट्वीट कर त्वरित कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने इसे प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि मानवता के विरुद्ध अपराध करार दिया है।

 

मानव अधिकार परिषद ने प्रशासन से दीपक बारीक को तुरंत विकलांगता पेंशन, प्रमाण पत्र और चिकित्सा सहायता मुहैया कराने की मांग की है। साथ ही, जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ जांच बैठाकर अनुशासनात्मक कार्रवाई की भी अपील की गई है। परिषद ने यह भी सुझाव दिया है कि प्रखंड स्तर पर विशेष शिविर लगाकर अन्य वंचित दिव्यांगजनों तक राहत पहुंचाई जाए।

 

यदि समय रहते कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो यह मामला राज्य और राष्ट्रीय स्तर के मानवाधिकार आयोगों तक ले जाया जाएगा।

 

फिलहाल, दीपक की यह पीड़ा केवल उसकी व्यक्तिगत पीड़ा नहीं रही, बल्कि यह पूरे तंत्र के उस मौन को दर्शाती है जो जरूरतमंदों की आवाज़ सुनने और समझने में विफल रहता है। यह एक मूकबधिर युवक की जिंदगी से ज्यादा, उस व्यवस्था की परीक्षा है जो सबको न्याय देने का दावा करती है।

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