जन्म से 6 माह तक के शिशुओं में कुपोषण की पहचान एवं प्रबंधन को लेकर दो दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित

चाईबासा: शिशु जीवन के शुरुआती 6 महीने अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं, और इसी अवधि में पोषण की आवश्यकता को लेकर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रमंडलीय प्रशिक्षण केंद्र, पताहातु में दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित बुधवार को किया गया।
यह प्रशिक्षण कार्यक्रम जन्म से 6 माह तक के शिशुओं में कुपोषण के खतरे की पहचान एवं उसके प्रबंधन पर केंद्रित रहा। कार्यक्रम में राष्ट्रीय प्रशिक्षक डॉ. जगन्नाथ हेंब्रम ने बताया कि इस उम्र में शिशुओं का शारीरिक और मानसिक विकास तेजी से होता है, ऐसे में पोषण की भूमिका बेहद अहम हो जाती है।
उन्होंने बताया कि यदि इस समय शिशुओं को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता है, तो वे गंभीर कुपोषण (SAM) के शिकार हो सकते हैं। साथ ही, यह समय शिशु के न्यूरो-डेवलपमेंट और भविष्य में होने वाली गैर-संचारी बीमारियों की रोकथाम के लिए भी अहम माना जाता है।
राज्य समन्वयक सुजीत कुमार सिन्हा ने बताया कि झारखंड राज्य में 6 माह से कम उम्र के शिशुओं में गंभीर कुपोषण की दर 32% तक देखी गई है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने बताया कि जन्म के समय शिशु का वजन कम से कम 2500 ग्राम होना चाहिए, और छह माह तक केवल स्तनपान कराया जाना चाहिए।
इसके अलावा संक्रमण से बचाव के लिए समय पर टीकाकरण, स्वच्छता का ध्यान और बीमारी के समय उचित देखभाल की जरूरत पर भी बल दिया गया।
प्रशिक्षण में कोल्हान क्षेत्रीय समन्वयक रामनाथ राय और रिम्स रांची के एससीओई भुषण कुमार ने भी हिस्सा लिया। कार्यक्रम में सदर चाईबासा की एएनएम, सीएचओ, सहिया बहनें और आंगनबाड़ी सेविकाएं भी शामिल हुईं।