गिरिगोवर्धन पूजा का पारंपरिक उल्लास: सरायकेला-खरसावां के लुपुंगडीह गांव में रचा गया भक्ति का रंग

न्यूज़ लहर संवाददाता
सरायकेला : झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिला के चांडिल अनुमंडल क्षेत्र के लुपुंगडीह गांव में इस वर्ष भी पारंपरिक हर्षोल्लास के साथ गिरिगोवर्धन पूजा का आयोजन किया गया।
गांव की महिलाएं लकड़ी की ढेकी से चावल पीसकर ‘गुड़ी’ नामक पारंपरिक व्यंजन तैयार करती हैं, जिसे देशी घी से पकाया जाता है। इसके बाद सभी महिलाएं और ग्रामीण मंदिर पहुंचकर भगवान कृष्ण और गिरिगोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना करते हैं।
गिरिगोवर्धन पूजा का धार्मिक महत्व
गिरिगोवर्धन पूजा का संबंध भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाने की कथा से जुड़ा है।
कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने इंद्र के क्रोध से वृंदावनवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाया था।
इसलिए हर वर्ष दीपावली के दूसरे दिन इस पर्व को मनाया जाता है। इस दिन गौ माता की पूजा, मिष्ठान अर्पण, और भक्ति गीतों का आयोजन किया जाता है।
गांव में पारंपरिक रौनक और ओहिर गीतों की गूंज
गांव की महिलाएं और युवतियां रंग-बिरंगे वस्त्रों में सजधज कर पूजा में शामिल होती हैं।
आंगनों को सुंदर रांगोली से सजाया जाता है और गौ-बछड़ों को रंगोली पर चलाया जाता है — यह दृश्य देखने लायक होता है।
पूजा के बाद महिलाएं ‘ओहिर गीत’ गाकर भगवान कृष्ण की लीलाओं का गुणगान करती हैं, जिससे पूरे गांव में भक्ति और आनंद का वातावरण बन जाता है।
गौ माता की सजावट और पूजा विधि
गौ माता को रंग-बिरंगे रंगों से सजाया जाता है, उनके माथे पर धान की मड़ (धान की बालियों से बनी सजावट) लगाई जाती है।
शाम के समय गौ पूजा के बाद उन्हें गुड़ी, मिष्ठान और देशी घी से बने व्यंजन खिलाए जाते हैं।
अगले दिन गांव में सोहराय पर्व मनाने की परंपरा भी है, जो पशुधन और समृद्धि के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
सांस्कृतिक धरोहर की झलक
लुपुंगडीह गांव की यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है, बल्कि झारखंड की लोकसंस्कृति और ग्राम्य जीवन की एकता को भी दर्शाती है।
इस पर्व में शामिल हर व्यक्ति प्रकृति, पशुधन और भगवान के प्रति आभार प्रकट करता है।
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झारखंड में गिरिगोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और लोकसंस्कृति का जीवंत उत्सव है।