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कौन हैँ काल भैरव?

आनंद शर्मा

9835702489

अष्टांग भैरव पर लेख तंत्र, पुराण, आगम और भैरव उपासना पर आधारित प्रमाणों के साथ प्रस्तुत किया गया है।

अष्टांग भैरव (या अष्ट भैरव) भगवान शिव के उग्र और रक्षक रूपों में से एक महत्वपूर्ण प्रणाली है, जिसमें शिव के आठ भैरव रूपों को दर्शाया गया है। ये आठों भैरव ब्रह्मांड के विभिन्न दिशाओं के अधिपति होते हैं और तंत्रशास्त्र में इनका अत्यंत महत्व है। ये न केवल लोकों की रक्षा करते हैं, अपितु साधक के लिए आठों दिशाओं की सुरक्षा भी सुनिश्चित करते हैं।

मार्गशीर्ष मास या अगहन मास मे कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को काल भैरव अष्टमी मनाया जाता हैँ ओस बार 2025 मे यह 12 नवंबर को हैँ

अष्टांग भैरव के नाम

1. असितांग भैरव

2. रुरुभैरव

3. चण्डभैरव

4. क्रोधभैरव

5. उन्मत्तभैरव

6. कपालीभैरव

7. भीषणभैरव

8. संहारभैरव

इन आठों भैरवों की पूजा विशिष्ट तांत्रिक विधियों से की जाती है और इनका सम्बन्ध अष्टमातृकाओं तथा दिक्पालों से भी जोड़ा गया है।
उत्पत्ति की कथा (शास्त्रीय संदर्भ)
शिव पुराण में वर्णन:

शिवपुराण के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने अपनी अहंकारवश यह कह दिया कि “मैं सृष्टिकर्ता हूँ और शिव से श्रेष्ठ हूँ”, तब शिव जी ने अपने क्रोध से भैरव को उत्पन्न किया। उस भैरव ने ब्रह्मा के पाँचवें सिर को काट दिया। इसके बाद, शिव जी ने भैरव को आदेश दिया कि वे ब्रह्महत्या के दोष से मुक्त होने हेतु काशी जाएँ।

यहीं से कालभैरव की महत्ता प्रकट होती है। इसी परंपरा में, शिव ने आठ दिशाओं की रक्षा हेतु अपने आठ उग्र रूपों को प्रकट किया — जिन्हें अष्टांग भैरव कहा गया।

तंत्रसार और रुद्रयामल तंत्र में वर्णन:

तंत्रसार में अष्टांग भैरव की साधना विधि, उनके मंत्र, यंत्र और आह्वान विधि दी गई है।

रुद्रयामल तंत्र में कहा गया है कि ब्रह्मांड की रक्षा हेतु शिव ने अपने शरीर के आठ अंगों से अष्ट भैरवों की उत्पत्ति की।

उत्पत्ति अंगों के अनुसार:

भैरव नाम अंग

असितांग भैरव सिर
रुरु भैरव हाथ
चण्ड भैरव पैर
क्रोध भैरव आँखें
उन्मत्त भैरव कंठ
कपाली भैरव हृदय
भीषण भैरव उदर
संहार भैरव पाँव की उँगलियाँ

अष्टांग भैरव और दिशाएँ (दिक्पाल स्वरूप)

भैरव दिशा रंग वाहन

असितांग पूर्व धूम्रवर्ण हंस
रुरु दक्षिण-पूर्व श्वेत बैल
चण्ड दक्षिण रक्त सिंह
क्रोध दक्षिण-पश्चिम कृष्ण हाथी
उन्मत्त पश्चिम पीत घोड़ा
कपाली उत्तर-पश्चिम नीला मृग
भीषण उत्तर धूम्र मनुष्य
संहार उत्तर-पूर्व रक्त गरुड़

साधना और तांत्रिक महत्व

अष्टांग भैरवों की उपासना मुख्यतः तंत्र मार्ग में की जाती है। साधक के लिए इनकी पूजा से:

भय, रोग, संकट से मुक्ति मिलती है

अष्टदिशाओं की सुरक्षा होती है

तंत्र साधनाओं में सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं

अदृश्य बाधाओं का नाश होता है

इनकी पूजा रात्रि काल, विशेषतः कालाष्टमी, भैरव अष्टमी, और महानिशा के समय की जाती है।

निम्बू की माला, चमेली फूल की माला, जलेबी, नारियल मदिरा का भोग विशेषत भैरव बाबा को लगाया जाता हैँ

ग्रंथों में उल्लेख

1. कालिका पुराण

2. शिव महापुराण

3. भैरव तंत्र

4. रुद्रयामल तंत्र

5. तंत्रसार

6. कालभैरव अष्टकम् — यह स्तोत्र कालभैरव को समर्पित है, किंतु अष्ट भैरवों के गुण उसमें समाहित हैं।

लाभ और संभावित हानि

लाभ:

शक्तिशाली सुरक्षा कवच

अदृश्य ऊर्जा जागरण

उच्च आध्यात्मिक उन्नति

मंत्र सिद्धि में सहायक

हानि (यदि अनुचित विधि अपनाई जाए):

उग्रता और मानसिक असंतुलन

तांत्रिक नियमों की अवहेलना करने पर उल्टा प्रभाव

अधूरी साधना से दैविक विघ्न

निष्कर्ष:

अष्टांग भैरव न केवल शिव के रक्षक रूप हैं, बल्कि ब्रह्मांड के समस्त चेतना की दिशा शक्ति के भी अधिपति हैं। तंत्र परंपरा में इनका स्थान अत्यंत उच्च है। इनकी उपासना साधक को समस्त दिशाओं में सुरक्षित, उन्नत और बलशाली बनाती है।

हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव

ॐ काल भैरवाय नमः

 

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