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वैवाहिक जीवन कष्टमय क्यों? ज्योतिष से जाने

कुंडली, हस्तरेखा, वास्तु, अंक ज्योतिष विशेषज्ञ

आनंद शर्मा

9835702489

कुंडली के विशेषज्ञ ज्योतिषचार्य श्री आनंद शर्मा जी कहते हैँ कि 16 संस्कार मे विवाह संस्कार एक महत्वपूर्ण संस्कार होता हैँ
जातक के पत्नी का सुख उसके सप्तम भाव से पता चलता हैँ यह भाव जब सही रहता हैँ तब पत्नी से सुख मिलता हैँ अगर पीड़ित होता हैँ तो धोखा, तलाक, दाम्पत्य जीवन कष्टमय रहता हैँ नाम मात्र के पति पत्नी होते हैँ

1- यदि पुरुष की कुण्डली में सप्तमेश अपनी नीचराशि या नीच नवमांश में हो, और –

(क)- किसी अशुभ भाव में हो !

(ख)- अपने नैसर्गिक शत्रु ग्रह से दृष्ट हो !

(ग)- अपने नैसर्गिक शत्रु ग्रह से किसी योग (चतुर्विधि) में हो !

तब या तो ऐसे जातक का विवाह ही नहीं होगा अथवा विवाह होने पर भी उसे एकाकी जीवन जीना पड़ सकता है !

2- यदि पुरुष की कुण्डली में शुक्र अपनी नीच राशि या नीच नवांश में हों और वह शुक्र कुण्डली के सप्तमेश ( जैसे कि सूर्य, मंगल, बृहस्पति या चन्द्र ) का नैसर्गिक शत्रुग्रह हो तब यह स्थिति उसके वैवाहिक जीवन में समरसता के लिए बाधक है !

3- उसी प्रकार यदि किसी स्त्री की कुण्डली में बृहस्पति अपनी नीचराशि या नीच नवमांश में स्थित हों और वह बृहस्पति कन्या के सप्तमेश का नैसर्गिक शत्रुग्रह भी हो (जैसे कि शुक्र, बुध या शनि ) तब यह योग भी वैवाहिक समरसता के लिए अनुकूल नही होता !

4- यदि किसी जातक का सप्तमेश अपने ही लग्नेश से असाधारण रूप से बलवान हो तब वह जातक अपने जीवनसाथी के अधीन रहेगा, या कहें उससे भयभीत रहेगा !

5- यदि किसी कुण्डली में मंगल की दृष्टि शुक्र और सप्तम स्थान दोनों पर पड़ रही हो तब वैवाहिक सम्बंध में थोड़ी सी भी समरसता नही रह सकती है ! साथ ही पति या पत्नी में से कोई एक अंगहीन भी हो सकता है !

6- यदि कुण्डली में शुक्र या गुरु को दो क्रूर ग्रह जैसे मंगल और शनि देख रहे हों और सप्तम स्थान पर सप्तमेश या बृहस्पति से कोई शुभ प्रभाव न हो तब पहले तो विवाह में ही अति विलम्ब होगा और यदि विवाह सम्पन्न हो भी गया तब वैवाहिक समरसता शून्य होती है !

7- यदि जन्मपत्री वृषभ, मिथुन या कन्या लग्न की हो, वहाँ पर बृहस्पति विराजमान हों और उन पर शनि की दृष्टि भी पड़ रही हो, तब जातक का शरीर बहुत बेडौल होता है, जिसके कारण वह वैवाहिक सुख का भोग नहीं कर पाता है !

8- यदि जन्मपत्री में लग्न में शनि और सप्तम भाव में बृहस्पति हों तब पति पत्नी की उम्र में काफी अंतर होता है !

9- यदि लग्नभाव में राहू या केतु हों और लग्न या सप्तम भाव पर शनि की दृष्टि भी हो तब जातक को जीवनसाथी उसके अनुरूप नहीं मिल सकता है ! विवाह केवल एक प्रकार का समझौता मात्र होगा और येनकेन प्रकारेण वैवाहिक रिश्ता चलता रहेगा !

10- यदि जन्मपत्री में सातवें भाव में मीन राशि में शनि या मंगल स्थित हो, अथवा बृश्चिक राशि में शुक्र स्थित हों या वृष राशि में बुद्ध स्थित हों या गुरू मकर राशि में स्थित हों तब पति-पत्नि साथ-साथ कम समय ही रह पाते हैं ! कारण अतिशुभता या अशुभता कुछ भी हो सकता है !

11- यदि वर और वधू दोनों कर्क लग्न के जातक हों तब यह दम्पत्ति आजीवन रोगी और दुखी रहेगा ! कुण्डली मिलान के समय इस पर अवश्य सावधानी रखनी चाहिए !

12- यदि वर का अष्टमेष कन्या का जन्म लग्नेश हो या कन्या का अष्टमेश वर का जन्म लग्नेश हो तब दोनों की मैत्री कुत्ते और बिल्ली के समान होगी और पूरा जीवन लड़ाई-झगड़े में बीतेगा !

13- यदि वर और कन्या दोनों के सूर्य एक ही राशि में स्थित हों और उनके अंशों में केवल दस अंशों तक का ही अन्तर हो तब घर में प्रतिदिन महाभारत (कलह) होती रहेगी !

14- यदि वर और वधू के सप्तमेश दोनों की कुण्डलियों में परस्पर पंचधामैत्री से अधिशत्रु बन रहे हों तब भी प्रतिदिन घर में कलह बनी रहती है !

नोट : यह तब ही सम्भव है जब एक का सप्तमेश बुध, शुक्र या शनि हो और दूसरे का सूर्य, चंद्र, मंगल या बृहस्पति हों !

15- यदि वर और वधू दोनों के सप्तमेश त्रिक भाव में स्थित हों तब दोनों की राय कभी एकमत नही हो सकती और हमेशा आपस में मतभेद बना रहता है !

16- यदि वर और वधू दोनों केे शुक्र सप्तम भाव में स्थित हों तब मारक होने के कारण दोनों अपना वैवाहिक जीवन स्वेच्छा से बिगाड़ लेते हैं !

17- यदि वर और वधू दोनों की जन्म कुण्डली के सुखभाव (चतुर्थ) और जायाभाव (सप्तम) में क्रूर ग्रह स्थित हों तब दोनों का एक साथ रहना लगभग असम्भव हो जाता है !

18- यदि किसी कुण्डली के सातवें भाव, सप्तमेश और शुक्र तीनो पर राहु का प्रभाव हो तब वह जातक अपनी जाति और धर्म से बाहर विवाह करता है !

19- यदि किसी कुण्डली में सातवें भाव में शनि अपनी उच्चराशि पर हों तब विवाह विलम्ब से होता है, किन्तु जीवनसाथी बहुत गुणवान और वफादार मिलता है ! वह सदा प्रभाव में भी रहता है और वैवाहिक जीवन चिरस्थाई रहता है !

20- किन्तु यदि किसी कुण्डली में सातवें भाव में शनि अपनी नीचराशि में हों तब ऐसे जातक को जीवनसाथी तो बहुत गुणवान मिलता है, क्योंकि यह योग स्वयं में राजयोग है किन्तु वह जातक शारीरिक सम्बंध के मामले में सदा अनुचित और अनियंत्रित रहता है !

इसलिए विवाह से पूर्व अच्छे से कुंडली मिलान करके शादी करना उचित रहता हैँ
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