गुदड़ी में पहली बार मनाया गया सरहुल बाह महोत्सव: एक नया कदम प्रकृति प्रेम और भाईचारे की ओर: महेंद्र जामुदा*
न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड: पश्चिम सिंहभूम जिले के घोर नक्सली प्रभावित क्षेत्र गुदड़ी प्रखण्ड के ग्राम कमरगाँव में पहली बार प्रकृति सरहुल बाह महोत्सव का आयोजन किया गया, जो इस क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक पल साबित हुआ। इस महोत्सव का संचालन जिला परिषद सदस्य सुनिता लुगुन और प्रमुख सामी भेंगरा के नेतृत्व में किया गया। आयोजन में रमेश लुगुन और गोपाल लुगुन ने महोत्सव की तैयारियों और संचालन में अहम भूमिका निभाई।

कार्यक्रम की शुरुआत ग्राम कमरगाँव के सरना समिति के पुजारी र्दिधा बरजो द्वारा पूजा-अर्चना से हुई। इसके बाद, गाँव के विभिन्न स्थानों जैसे डाऊगड़ा खुटी, लुम्बाई बदंगाव, और सोगरा हेस्साडीह से आए ग्रामीणों ने उत्सव में पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किए, जो कार्यक्रम में एक नया उत्साह लेकर आए। नृत्य और संगीत से सजी महोत्सव की संगीतमय धारा ने उपस्थित जनसमूह को अभिभूत कर दिया।

महोत्सव के इस अवसर पर अधिवक्ता महेन्द्र जामुदा ने अपने संदेश में कहा कि सरहुल और बाह पर्व आदिवासी संस्कृति के महत्वपूर्ण प्रतीक हैं। इन पर्वों के माध्यम से प्रकृति प्रेम और भाईचारे का संदेश मिलता है। महेन्द्र जामुदा ने कहा कि यह पर्व हमें एकजुट होने और मिलजुल कर एक दूसरे से शुभकामनाएं देने का अवसर प्रदान करता है। इस अवसर पर सरहुल के फूलों को कानों में पहनकर एक दूसरे को शुभकामनाएं दी जाती हैं और सामूहिक रूप से नाचते-गाते हुए प्रेम और भाईचारे का आदान-प्रदान होता है।

उन्होंने यह भी कहा कि गुदड़ी प्रखण्ड में पहली बार इस प्रकार के आयोजन का आयोजन किया गया है, जिसके लिए आयोजन कर्ता बधाई के पात्र हैं। वे उम्मीद करते हैं कि इस प्रकार के आयोजन हर साल होते रहेंगे और इनसे शांति, प्रेम, और भाईचारे का संदेश फैलता रहेगा। साथ ही प्रशासन को भी उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया गया।
इसके बाद, सभी उपस्थित लोग ग्राम कमरगांव से गुदड़ी अंचल कार्यालय तक एक भव्य शोभा जुलूस के रूप में निकल पड़े। इस शोभा जुलूस में ग्रामीणों ने मदल और नगढ़ा की धुन पर सरहुल के पारंपरिक गीत गाए, नाचते और झूमते हुए माहौल को पूरी तरह से रंगीन और उत्साह से भरा। इस जुलूस में नितिन जामुदा, जिरगा बरजो, सोनु गोण्डरा, बाजोम बरजो, गगाराम बरजो, लबो लोमगा, लेवा बरजो, रेला सोय, रोके बरजो, सानिका बरजो, सेवो भुईया, कोनो सोय, मोहन बरजो, सानिका हापदगाड़ा, मंगरा बरजो, सोमा बरजो, गोने बरजो, गोला बरजो, गाना बरजो, रंजीत बरजो और अन्य ग्रामवासी प्रमुख रूप से शामिल थे।
यह आयोजन न केवल गुदड़ी प्रखण्ड के लिए एक नई शुरुआत है, बल्कि यह आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास भी है। इस प्रकार के आयोजनों से न केवल स्थानीय स्तर पर एकता और भाईचारा बढ़ता है, बल्कि यह प्रकृति और मानवता के बीच के अटूट संबंध को भी दर्शाता है।















