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“जाने खरसावाँ गोलीकांड के संबंध में “

 

न्यूज़ लहर संवाददाता

 

*📜 तिथि : 01 जनवरी 1948 📜*

 

*>> सराइकेला-खरसावाँ रियासत <<*

 

सराइकेला तथा खरसावां छोटानागपुर के दो देशी रियासत थे और दोनों राज्य छोटानागपुर के कमिश्नर के अधीन थे। सराइकेला राज्य की स्थापना राजा विक्रम सिंह द्वारा 1620 में की गई थी और खरसावाँ राज्य कि स्थापना सन 1650 को विक्रम सिंह के दुसरे पुत्र कुंवर पदम सिंह द्वारा किया गया था।

 

*>> सराइकेला-खरसावाँ गोलीकांड के कारण <<*

 

1947 में भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात ये दोनों देशी रियासत भारत संघ में सम्मलित हो गए। अब समस्या उत्पन्न हुई कि ये पड़ोस के राज्य ओड़िशा में मिले या बिहार में। सराइकेला और खरसावां रियासत को उड़िया भाषी राज्य होने के नाम पर उड़ीसा अपने साथ मिलाना चाहता था। मगर इलाके की आदिवासी जनता न तो उड़ीसा में मिलना चाहती थी और न बिहार में।इनकी मांग एक अलग झारखंड राज्य की थी।

यहाँ के अधिकतम लोगों के इच्छा के विरुद्ध केंद्र के दबाव में मयूरभंज रियासत के साथ-साथ ‘सरायकेला’ और ‘खरसावां’ रियासत को ओडिसा में विलय करने का समझौता हुआ।

 

इस विलय प्रक्रिया की पूरी स्क्रिप्ट भारत के आजादी के साथ ही लिखी जानी शरू हुई. 20 नवम्बर, 1947, नई दिल्ली, वीपी मेनन के आवास पर इस सन्दर्भ में उड़ीसा के तत्कालीन प्रीमियर हरे किशन महताब और संबलपुर के तत्कालीन क्षेत्रीय आयुक्त की मौजूदगी में हुए बैठक में सरदार पटेल और वीपी मेनन ने खरसावाँ को उड़ीसा में विलय के पक्ष में सहमती जताई।

 

13 और 14 दिसम्बर, 1947 में सरदार पटेल कटक आ विलय प्रक्रिया पूरी की साथ ही सत्ता हस्तांतरण का दिन 1 जनवरी 1948 निश्चित की गई। हालांकि, भारत सरकार को बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि इसका विरोध इतना व्यापक होगा।

 

*>> आदिवासियों में भारी असंतोष और नाराजगी <<*

 

इस विलय की निर्णय से आदिवासियों में भारी असंतोष और नाराजगी हुई। आदिवसी महासभा के नेतृत्व में कई स्थानों पर आम सभाएँ बुलाई गई और प्रस्ताव पास कर सरकार को सूचित किया गया कि खरसावाँ की जनता ओड़िशा में नहीं बल्कि बिहार में रहना चाहती हैं।

 

तब मरांग गोमके के नाम से जाने जाने वाले आदिवासियों के सबसे बड़े नेताओं में से एक और ओलंपिक हॉकी टीम के पूर्व कप्तान जयपाल सिंह मुंडा ने इसका विरोध करते हुए आदिवासियों से खरसावां पहुंचकर विलय का विरोध करने का आह्वान किया। इसी आह्वान पर वहां दूरदराज इलाकों से लेकर आस-पास के इलाकों के हजारों आदिवासियों की भीड़ अपने पारंपरिक हथियारों के साथ निकल पड़ी।

 

1 जनवरी 1948 को ही खरसावाँ देशी राज्य को ओड़िशा राज्य में मिलाने के विरोध में आदिवासी महासभा द्वारा खरसावाँ बाजार में एक मीटिंग बुलाई गई पूरे कोल्हान इलाके से बूढ़े-बुढ़िया, जवान, बच्चे, सभी एक जनवरी को हाट-बाज़ार करने और जयपाल सिंह मुंडा को सुनने-देखने आए। जयपाल सिंह मुंडा के आने के पहले ही भारी भीड़ जमा हो गई थी, करीब 35,000 से भी अधिक लोग आए।

 

*>> गोलीकांड की शुरुआत <<*

 

गोलीकांड का दिन गुरुवार और बाजार-हाट का दिन था। उड़ीसा सरकार ने पूरे इलाक़े को पुलिस छावनी में बदल दिया था। पुलिस ने वहां पर एक मशीनगन गाड़ कर एक लकीर खींच दी और लोगों से कहा गया था कि वे लकीर पार कर राजा से मिलने की कोशिश न करें।

 

खरसावां विलय के विरोध में आदिवासी इक्कठा हो चुके थे लेकिन किसी कारणवश जयपाल सिंह मुंडा सभा में नहीं आ पाए। जयपाल सिंह मुंडा के नहीं आने पर भीड़ का धैर्य जवाब दे चुका था। पुलिस किसी भी तरीके से भीड़ को रोकना चाहती थी, लेकिन अचानक से ओडिसा मिलिट्री पुलिस ने भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग करना शुरू कर दिया, ताकि आदिवासी आंदोलनकारियों की अलग झारखंड राज्य के आंदोलन को दबाया जाए और खरसावां रियासत को ओडिसा में विलय कर दिया जाए।

 

नारेबाजी के बीच लोग समझ नहीं पाए और ओड़िशा पुलिस की इस अंधाधुंध फायरिंग में करीब हजारो निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया।

 

*>> गोलीकांड के बाद की स्थिति <<*

 

इस गोलीकांड में हजारों लोगों के शहादत के कारण 1949 में खरसावाँ विलय को केंद्र सरकार द्वारा रद्द कर दिया गया।

 

आज जो शहीद स्थल है वहां एक बहुत बड़ा कुआं था।यह कुआं वहां के राजा रामचंद्र सिंहदेव का बनाया हुआ था। इस कुएं को न केवल लाश बल्कि अधमरे लोगों से भर दिया गया और फिर उसे ढ़क दिया गया। कुछ लाशों को ट्रकों में लाद कर पास के जंगलों में फेंक दिया गया।

पूर्व सांसद और महाराजा पीके देव की किताब ‘मेमोयर ऑफ ए बायगॉन एरा’ के मुताबिक इस घटना में दो हज़ार लोग मारे गए थे।

 

‘जलियांवाला बाग कांड’ के असल विलेन ‘जनरल डायर’ को तो पूरा विश्व जानता है लेकिन ‘खरसावां गोलीकांड’ में मारे गए हज़ारों झारखंडियों की हत्या करने वाला असली डायर कौन था, इस पर आज भी पर्दा पड़ा हुआ है। इस गोलीकांड की जांच के लिए ट्रिब्यूनल का भी गठन किया गया था, पर उसकी रिपोर्ट का क्या हुआ, किसी को पता नहीं।

 

आजाद भारत के जलियांवाला बाग़ से भी बड़े अपनों द्वारा किये गए नरसंहार पर किसी भी पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। जलियांवाला बाग़ गोलीकाण्ड की नैतिक जिम्मेदारी इंग्लैंड की सरकार ने तो ली परन्तु अफ़सोस कि अब तक भारत सरकार और उड़ीसा सरकार ने इस नरसंहार की कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं ली है।

 

भारत के मानचित्र में उभरने वाली झारखण्ड की तस्वीर का अक्स शायद ऐसा न होता, गर 1 जनवरी 1948 को इन हजारों शहीदों ने खरसावाँ में अपनी शहादत न दी होती।

सौजन्य: इंटरनेट

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