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राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत विश्वनाथ लकड़ा को आदिवासी उरांव समाज ने किया सम्मानित

न्यूज़ लहर संवाददाता
झारखंड: कहते हैं कि कला और सौंदर्य दोनो एक दूसरे के पूरक है, किसी भी कला कि प्रथम दृष्टा भाव ही होता है, जिसमे कलाकार की विचार और सृजनशीलता आकार लेता है। राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजे जा चुके पश्चिम सिंहभूम जिला चाईबासा के विश्वनाथ लकड़ा एक ऐसा ही चित्रकार हैं, जो विगत कई वर्षों से कला साधना में लीन रहते हुए अपनी अलग पहचान बनाई है। उनके इस अभूतपूर्व उपलब्धि को देखते हुए आदिवासी उरांव समाज के द्वारा चाईबासा के पुलहातु स्थित समुदायिक भवन (कुडुख लाइब्रेरी) में समाज के पदाधिकारियों के द्वारा पुष्पगुच्छ, मिष्ठान के साथ सम्मानित किया गया। इस सम्मान समारोह में संबोधित करते हुए उरांव समाज के अध्यक्ष संचु तिर्की ने कहा कि समाज में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, बस जरूरत है तो उचित मार्गदर्शन की, उचित व्यवस्था की। हमें गर्व है हमारे समाज से जुड़े विश्वनाथ लकडा पर जिन्होंने अपने देश की नहीं अपितु विदेशों में जाकर अपना कला का परचम लहराया है। आगे संबोधित करते हुए समाज के मुख्यसलाहकार सहदेव किस्पोट्टा ने कहा कि हीरा कोयले में से ही निकलता है, जरूरत होती है उसे तराशने की। आज समाज को विश्वनाथ पर गर्व है, और हम सभी चाहते हैं की विश्वनाथ नई पीढ़ी को भी अपना ज्ञान बांटे, ताकि हमारी नई पीढ़ी भी आगे बढ़कर समाज देश का नाम रोशन करें। इस सम्मान समारोह में आगे संबोधित करते हुए सलाहकार समिति से जुड़े बाबूलाल बरहा ने कहा कि मैं विश्वनाथ को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं, बहुत ही संघर्ष पूर्ण इनका जीवन रहा है। और कोई भी करिश्मा रातों-रात नहीं होता है, उसके लिए जप तप और महायज्ञ भी करना पड़ता है। मैं इनके कला के प्रति लगन, रुझान और परिश्रम को नमन करता हूं। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए “बल्डमैन” लालू कुजूर ने कहा कि गिनती हमेशा व्यक्ति की होती है और चर्चा हमेशा व्यक्तित्व का होता है, और व्यक्तित्व उनके कर्मों से ही बनता है। हमें गर्व है कि ऐसे व्यक्तित्व के धनी हमारे समाज से जुड़े हैं, आज इनको सम्मानित करते हुए हमारा समाज खुद सम्मान पा रहा है। चाईबासा के कुम्हारटोली में जन्मे विश्वनाथ की कलायात्रा में एक और उपलब्धि जुड़ गया है, अकादमी ऑफ फाईन आर्ट्स, कोलकाता में “अंतर्नाद”के तहत चित्रकला प्रदर्शनी का आयोजन 2 मई से 8 मई तक किया गया था, जिसका उद्घाटन भारतीय फिल्म मेकर्स गौतम घोष के द्वारा किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में बंगाल के प्रसिद्ध चित्रकार शुभा प्रसन्ना मौजूद थे, एक सप्ताह तक चलने वाली प्रर्दशनी में विश्वनाथ की बनाई गई कृतियों को लोगों ने काफी सराहा, विदित हो कि विश्वनाथ कई राज्य और राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजे जा चुके हैं। 1993 में पंजाब सरकार, 2008 में तत्कालीन मुखमंत्री झारखंड सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में विशेष योगदान हेतु सम्मानित किया गया, 2008 में ही यूके द्वारा सांकृतिक आदान _प्रदान के तहत इंगलैंड भ्रमण का अवसर प्रदान हुआ, तथा 2015 में राष्ट्रीय पुरस्कार कमेटी के जूरी सदस्य भी रहे। अब तक विश्वनाथ की कृतियों का प्रर्दशनी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, पटना, रांची, लखनऊ, अमृतसर, गोहाटी, जमशेदपुर, जम्मू कश्मीर, गोवा, नागपुर, आदि शहरों मैं गैलरी की शोभा बढ़ा चुकी है। इनकी कृतियों की संग्राह झारखण्ड स्टेट म्यूजियम, रांची, गुमला ट्रैवल म्यूजियम, त्रिशांत सेंटर फॉर आर्ट, जम्मू कश्मीर, देवेंग्रे कॉलेज ऑफ आर्ट, बेगलुरू, लुना नॉर्थ, यूके। कोलकाता में आयोजित प्रदर्शनी को सफल बनाने में भारत के महान ग्राफिक आर्टिस्ट पद्मश्री प्राप्त प्रोफेसर श्याम शर्मा जी का प्रोत्साहन सराहनीय रहा।

उन्होंने विश्वनाथ की कृतियों की तारीफ की, एक सवाल के जवाब में विश्वनाथ ने कहा कि झारखण्ड में प्रतिभा की कमी नहीं है चिंतन जाहिर करते हुए कहा कि झारखण्ड की लोक कला सोहराई और जादोपतिया आज लुप्त के कगार पर है, सरकार को इस दिशा में सकारात्मक पहल करना चाहिए, विश्वनाथ दैनिक हिंदुस्तान, प्रभात खबर, पाटलिपुत्र टाईम्स, पटना में अपनी योगदान दे चुके हैं। आज करीब 1500 काटून और रेखा चित्र प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने कई मैथीली और हिन्दी रंगमंच से जुड़ कर नाटकों का मंचन किया, फिलहाल जवाहर नवोदय विद्यालय खूंटी में कला के शिक्षक के पद पर आसीन रहते हुए अपनी कला साधना में लीन हो कर अपनी कल्पना को आकार दे रहे है।

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